सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बेहद गंभीर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) खासतौर पर फरीदाबाद, गुरुग्राम और गाजियाबाद में बढ़ते अपराध और गिरती कानून-व्यवस्था पर तीखी नाराजगी जताई। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाला बागची की बेंच एक ऐसे आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पहले से 55 से ज़्यादा आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि ऐसे अपराधियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए और न्यायपालिका का यह कर्तव्य है कि वह समाज को ऐसे तत्वों से छुटकारा दिलाए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “दिल्ली की सीमा से बाहर निकलकर देखिए कि फरीदाबाद और गुरुग्राम में क्या हो रहा है। गवाह डर के साए में जी रहे हैं, अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं, और मुकदमे सालों से लटके हुए हैं। यह स्थिति अब और बर्दाश्त नहीं की जा सकती।”
न्याय प्रक्रिया पर असर
कोर्ट ने कहा कि अपराधी जानबूझकर मुकदमों को लंबा खींचते हैं ताकि गवाहों को डराया जा सके या प्रभावित किया जा सके। जस्टिस बागची ने साफ शब्दों में कहा कि “हर ट्रायल में जानबूझकर देरी की जाती है ताकि आरोपी अंततः बरी हो जाए।” जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अदालतें आंख और कान की तरह होती हैं, लेकिन जब गवाह ही डर के कारण अदालत नहीं पहुंचेंगे, तो न्याय कैसे मिलेगा? उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के लिए यह एक गंभीर चुनौती है और उसे इसे गंभीरता से लेना होगा। एनसीटी दिल्ली में वर्तमान में 288 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं, जिनमें से 180 मामलों में अब तक आरोप भी तय नहीं हो पाए हैं। सिर्फ 25% मामलों में ही अभियोजन पक्ष ने साक्ष्य पेश करने की प्रक्रिया शुरू की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रक्रिया कितनी धीमी हो गई है।
त्वरित न्याय प्रणाली और ढांचागत सुधार जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और उच्च न्यायालय को कुछ ठोस सुझाव दिए हैं।
इनमें फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना, अतिरिक्त न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति, ‘एडहॉक’ न्यायिक कैडर का गठन, केसों का प्राथमिकता के आधार पर विभाजन, मुकदमों की रोजाना सुनवाई की व्यवस्था, आरोप तय करने और आरोपपत्र दाखिल करने के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित करना, अधिवक्ताओं की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए मुआवज़ा व्यवस्था, बार-बार होने वाले स्थगन (adjournments) पर रोक लगाने पर ध्यान देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट यदि चाहे तो NCR में विशेष अदालतें बना सकती है, लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों का सहयोग आवश्यक है।
कानून का डर कम हो रहा है
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि आम लोगों की नजर में कानून का डर कम होता जा रहा है। NCR क्षेत्र में अपराधियों का आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा है, जो न केवल समाज की शांति के लिए खतरा है, बल्कि देश की न्याय व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। जस्टिस सूर्यकांत ने आंध्र प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां विशेष मामलों के लिए अलग अदालतें और आवश्यक ढांचा तैयार किया गया, जिससे मुकदमों का शीघ्र निपटारा हुआ।
उन्होंने सुझाव दिया कि इसी मॉडल को NCR में भी अपनाया जा सकता है। इस बीच कोर्ट ने गृह मंत्रालय के सचिव और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को नोटिस जारी किया है और मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की गई है। अदालत इस बात को लेकर गंभीर है कि यदि न्यायिक प्रणाली को समय रहते मज़बूत नहीं किया गया, तो समाज अपराधियों के हाथों बंधक बन सकता है।





