सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को आवासीय इलाकों से हटाकर आश्रयों में ले जाने का आदेश दिया है, जिससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। पशु प्रेमी इस फैसले को अमानवीय बता रहे हैं, जबकि कुछ लोग कुत्तों के हमलों का हवाला देकर इसका समर्थन कर रहे हैं। दिल्ली में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्ते हैं और इन्हें रखने के लिए 2000 आश्रयों की जरूरत होगी, जबकि वर्तमान में केवल 20 पशु नियंत्रण केंद्र हैं, जो सिर्फ 5000 कुत्तों को ही रख सकते हैं। आश्रयों का निर्माण, जमीन का आवंटन और धन की व्यवस्था बड़ी चुनौतियां हैं।
आवारा कुत्तों को पकड़ना और उनकी देखभाल भी आसान नहीं है। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के पास हर जोन में सिर्फ 2-3 वैन और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी है। पशु प्रेमियों के विरोध से स्थिति तनावपूर्ण हो सकती है। इसके अलावा, लाखों कुत्तों को रोजाना खिलाने और उनकी देखभाल के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये, पशु चिकित्सक, एम्बुलेंस और अन्य संसाधनों की जरूरत होगी। एमसीडी अधिकारियों ने कहा है कि वे आश्रय निर्माण और फंडिंग पर चर्चा के लिए बैठक करेंगे।
26,000 कुत्तों के काटने के मामले
दिल्ली में इस साल 26,000 कुत्तों के काटने के मामले और 49 रेबीज के केस दर्ज हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फैसला जनहित में है और सड़कों को पूरी तरह आवारा कुत्तों से मुक्त करना जरूरी है। कोर्ट ने आठ सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट मांगी है। हालांकि, पशु अधिकार संगठनों का कहना है कि कुत्तों को जबरन हटाना क्रूर और अव्यावहारिक है। पेटा इंडिया ने चेतावनी दी है कि यह कदम कुत्तों की आबादी, रेबीज या काटने की घटनाओं को कम नहीं करेगा, क्योंकि आश्रय बनाना संभव नहीं है और कुत्ते अपने क्षेत्र में वापस लौट सकते हैं।
आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने का क्या कारण
पशु अधिकार संगठनों का तर्क है कि दिल्ली में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने का कारण प्रभावी नसबंदी कार्यक्रम की विफलता है। उनका कहना है कि कुत्तों को हटाने की बजाय नसबंदी और टीकाकरण पर ध्यान देना चाहिए। यह न केवल अधिक मानवीय है, बल्कि कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने और रेबीज को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका भी है। इस विवाद ने एक बार फिर आवारा कुत्तों की समस्या और इसके समाधान पर चर्चा को तेज कर दिया है।





