लाल किले पर कब्जे की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की, महिला ने खुद को बताया था बहादुर शाह ज़फ़र का वंशज

याचिका में दावा किया गया था कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने परिवार को उनकी संपत्ति से वंचित कर दिया था, जिसके बाद सम्राट को देश से निर्वासित कर दिया गया था और लाल किले को मुगलों से छीन लिया गया।

Supreme Court : देश की सर्वोच्च अदालत ने लाल किले पर कब्जे की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता महिला ने खुद को मुगल बादशाह बहादुर शाह जफ़र द्वितीय के परपोते की विधवा होने का दावा करते हुए कानूनी उत्तराधिकारी बताकर लाल किले पर कब्जा मांगा था। मुख्य न्यायाधीश ने दलील सुनने के दौरान कहा कि यदि याचिका पर विचार किया जाये तो केवल लाल किला ही क्यों, फिर आगरा, फतेहपुरी सीकरी आदि के किले क्यों नहीं? और फिर उन्होंने याचिका कहारिज कर दी।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए याचिका को गलत और निराधार कहा। अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर इस याचिका पर विचार करने से ही इंकार कर दिया। सीजेआई ने कहा कि रिट याचिका गलत और निराधार थी। इस पर विचार नहीं किया जा सकता। खास बात ये रही कि पीठ ने याचिकाकर्ता सुल्ताना बेगम के वकील को याचिका वापस लेने की अनुमति नहीं दी।

ये है पूरा मामला

दर असल सुलताना बेगम ने दावा किया कि वह अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह जफ़र द्वितीय के परपोते की विधवा हैं और 1857 के बाद उनके परिवार को लाल किले से जबरन बेदखल कर दिया गया था। उन्होंने वर्ष 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट में भी एक रिट याचिका दाखिल कर लाल किले के स्वामित्व का दावा किया और सरकार से मुआवजे की मांग की थी । याचिका में आरोप लगाया गया था कि लाल किला जो वर्तमान में भारत सरकार के नियंत्रण में है और वो  अवैध कब्जे में है उसका कब्ज़ा वापस लेकर उसे उनके परिवार को वापस सौंपा जाना चाहिए।

दिल्ली हाई कोर्ट ने भी खारिज की थी याचिका

दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने दिसंबर 2021 में बेगम की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने 13 दिसंबर 2024 को अपील दाखिल की जिसे जज ने ये कहकर ख़ारिज कर दिया कि चुनौती ढाई साल की देरी के बाद दायर की गई थी। इसे माफ नहीं किया जा सकता था। इस पर बेगम ने कहा कि वह अपने खराब स्वास्थ्य और बेटी के निधन के कारण अपील दायर नहीं कर सकी। सुल्ताना की दलील पर न्यायालय ने कहा था कि हमें यह स्पष्टीकरण अधूरा लगता है,  देरी के लिए माफी का आवेदन खारिज किया जाता है।

याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने की थी ये टिप्पणी 

आपको बता दें 20 दिसंबर 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवैध रूप से लिए गए लाल किले पर कब्जे की मांग वाली सुल्ताना बेगम की याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि 150 से अधिक वर्षों के बाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में बहुत ज्यादा देरी हुई है, देरी का कोई औचित्य नहीं है।

याचिकाकर्ता का ये कहना था 

याचिका में सुल्ताना बेगम द्वारा दावा किया गया कि बेगम लाल किले की मालिक थीं, क्योंकि उन्हें यह किला अपने पूर्वज बहादुर शाह जफर द्वितीय से विरासत में मिला था, जिनकी मृत्यु 82 साल कि उम्र में  11 नवंबर 1862 को आयु में हो गई थी जिसके बाद भारत सरकार ने संपत्ति पर अवैध कब्जा कर लिया है। याचिका में केंद्र को लाल किला याचिकाकर्ता को सौंपने या पर्याप्त मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की गई थी जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया है ।


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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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