बोझिल और निजता का उल्लंघन करने वाला, यूपी के धर्मांतरण विरोधी कानून पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

कोर्ट ने धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में राज्य के अधिकारियों की भूमिका पर ध्यान दिया, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट को हर धर्म परिवर्तन के मामले में पुलिस जांच का निर्देश देना अनिवार्य है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 2021 में लागू किए गए उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों पर चिंता जताई। कोर्ट ने इस कानून के कुछ हिस्सों को बोझिल और संभावित रूप से निजता का उल्लंघन करने वाला बताया। जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में सरकारी अधिकारियों की स्पष्ट भागीदारी पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि यह मामला कानून की संवैधानिक वैधता की जांच से संबंधित नहीं है, लेकिन प्री और पोस्ट-कन्वर्जन घोषणा की आवश्यकताएं किसी व्यक्ति के लिए अपनी पसंद का धर्म अपनाने की प्रक्रिया को बहुत जटिल बनाती हैं।

कोर्ट ने धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में राज्य के अधिकारियों की भूमिका पर ध्यान दिया, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट को हर धर्म परिवर्तन के मामले में पुलिस जांच का निर्देश देना अनिवार्य है। इसके अलावा, धर्म परिवर्तन करने वालों के व्यक्तिगत विवरण को सार्वजनिक करने की आवश्यकता पर भी कोर्ट ने चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की आवश्यकता संविधान में निहित निजता के अधिकार के साथ कितनी संगत है, इसकी गहन जांच की जरूरत है।

विश्वास-पूजा की स्वतंत्रता का अधिकार

खंडपीठ ने भारत के लोगों को विचार, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता का अधिकार होने की बात दोहराई, इसे देश की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का प्रतीक बताया। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि क्या धर्म परिवर्तन करने वालों के व्यक्तिगत विवरण को सार्वजनिक करना संवैधानिक निजता के अधिकार के अनुरूप है। कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि 2021 के इस कानून के कुछ हिस्से संविधान के भाग III के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं।

क्या था यह पूरा मामला

यह टिप्पणी उस समय आई जब कोर्ट ने प्रयागराज के सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी एंड साइंस (SHUATS) के कुलपति और अन्य अधिकारियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया। इन पर कथित तौर पर सामूहिक रूप से ईसाई धर्म में परिवर्तन के लिए मजबूर करने का आरोप था। कोर्ट ने इस मामले में धर्म परिवर्तन से जुड़े कानून के कुछ प्रावधानों को मौलिक अधिकारों के खिलाफ माना और इसकी गहन जांच की आवश्यकता पर बल दिया।


Other Latest News