सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें कुछ राजनीतिक दलों की ओर से राष्ट्र ध्वज जैसे दिखने वाले झंडों को अपने चुनाव चिह्नों के साथ उपयोग करने के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि यह राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 का उल्लंघन है।
याचिका संजय भीमशंकर थोबडे ने दायर की थी जो स्वयं न्यायालय में उपस्थित हुए थे। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि कई राजनीतिक दल अपने प्रचार अभियानों में तिरंगे जैसे झंडों का उपयोग कर रहे हैं जिनमें अशोक चक्र की जगह अक्सर पार्टी के प्रतीक चिह्न को शामिल किया जाता है। याचिका में विशेष रूप से कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार), और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का उल्लेख किया गया था।
राष्ट्रीय ध्वज के दुरुपयोग का आरोप
याचिकाकर्ता ने इन दलों पर राष्ट्रीय ध्वज के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। बेंच ने कहा, “ये दल ऐसा कब से कर रहे हैं? कुछ दल तो आजादी के बाद से ऐसा कर रहे हैं।” इसके बाद याचिका को खारिज कर दिया गया।
राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा नहीं माना
उच्चतम न्यायालय का इस याचिका को खारिज करना दर्शाता है कि अदालत ने इसे राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा मानने के बजाय लंबे समय से चली आ रही प्रथा के रूप में देखा। यह निर्णय यह संकेत देता है कि न्यायालय ने राष्ट्रीय ध्वज के दुरुपयोग के आरोपों को गंभीरता से लेने के लिए पर्याप्त सबूत या तात्कालिकता नहीं पाई। यह मामला राष्ट्रीय प्रतीकों के उपयोग और उनकी मर्यादा के प्रति समाज और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी पर बहस को और गहरा सकता है, खासकर जब यह प्रचार और राजनीतिक पहचान से जुड़ा हो।





