सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत और क्षेत्रीय राजनीति को लोकतंत्र के लिए उतना ही खतरनाक बताया जितना कि सांप्रदायिक राजनीति, क्योंकि ये सभी प्रतिनिधि लोकतंत्र की भावना को विकृत करते हैं। यह टिप्पणी तब आई जब कोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) की पंजीकरण रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसके बजाय राजनीतिक दलों में व्यापक सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया। यह याचिका शिवसेना के सदस्य तिरुपति नरसिम्हा मुरारी ने दायर की थी जिन्होंने एआईएमआईएम के पंजीकरण को चुनौती देते हुए दावा किया था कि यह पार्टी धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने तर्क दिया कि एआईएमआईएम का संविधान इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देता है और धार्मिक पहचान पर आधारित है। यह संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर वोट मांगना भ्रष्ट चुनावी प्रथा है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के अभिराम सिंह बनाम सीडी कोम्माचेन मामले में कहा गया था। जैन ने यह भी तर्क दिया कि अगर कोई हिंदू नाम से पार्टी पंजीकरण के लिए चुनाव आयोग में जाता है तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
अल्पसंख्यकों को भी है अधिकार
जस्टिस सूर्य कांत और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एआईएमआईएम के पंजीकरण में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पार्टी का संविधान पिछड़े वर्गों के आर्थिक और शैक्षिक उत्थान के लिए काम करने की बात करता है। संविधान में अल्पसंख्यकों को कुछ अधिकार दिए गए हैं जिनके संरक्षण के लिए पार्टी का घोषणापत्र काम करता है। इस्लामी शिक्षा पर जोर देने के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि वेदों या अन्य प्राचीन ग्रंथों को पढ़ाने पर कोई कानूनी रोक नहीं है। अगर चुनाव आयोग को आपत्ति है तो इसके लिए उचित मंच पर जाना चाहिए।
राजनीतिक दलों के शासन में सुधार की जरूरत
एआईएमआईएम के पंजीकरण को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के शासन में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। कोर्ट ने कहा कि सांप्रदायिक, जातिगत और क्षेत्रीय अपीलों के बढ़ते उपयोग को देखते हुए व्यापक सुधारों की जरूरत है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि अगर इस तरह की याचिका में दम हो तो वह सभी राजनीतिक दलों से उनके विचार मांग सकता है। हालांकि, इस मामले में कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया लेकिन राजनीतिक सुधारों के लिए एक बड़े दायरे में बहस की आवश्यकता पर जोर दिया।





