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Fri, Dec 19, 2025

‘मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय पोस्ट ऑफिस नहीं’, सुप्रीम कोर्ट कैश कांड पर सुनवाई के दौरान क्यों भड़का

Written by:Mini Pandey
Published:
कोर्ट ने जवाब में कहा कि सीजेआई को किसी जज के खिलाफ गलत आचरण की शिकायत मिलने पर उसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने का कर्तव्य है।
‘मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय पोस्ट ऑफिस नहीं’, सुप्रीम कोर्ट कैश कांड पर सुनवाई के दौरान क्यों भड़का

सुप्रीम कोर्ट ने आज जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद कोई डाकघर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय कर्तव्यों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पद है। जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित घर में आग लगने के दौरान भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद उनके खिलाफ जांच शुरू हुई थी। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की कमेटी ने उनकी हटाने की सिफारिश की थी, जिसे जस्टिस वर्मा ने चुनौती दी है।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच के समक्ष जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस कमेटी को जज को हटाने की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है। सिब्बल ने संविधान के अनुच्छेद 124 और जजेस इन्क्वायरी एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि नियमों को दरकिनार कर कोई अतिरिक्त-संवैधानिक तंत्र नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने जवाब में कहा कि सीजेआई को किसी जज के खिलाफ गलत आचरण की शिकायत मिलने पर उसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने का कर्तव्य है।

जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई

सिब्बल ने तर्क दिया कि कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई को राजनीतिक बनाया जा रहा है, जबकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कमेटी की रिपोर्ट केवल प्रारंभिक है और यह भविष्य की कार्रवाई को प्रभावित नहीं करेगी। कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के आचरण पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनका व्यवहार विश्वास को प्रेरित नहीं करता। कोर्ट ने यह भी पूछा कि जस्टिस वर्मा ने कमेटी के सामने अपनी बात क्यों रखी, जिस पर सिब्बल ने कहा कि अगर कमेटी यह साबित करती है कि पैसा उनका है तो वह इसे स्वीकार करने को तैयार हैं।

सिफारिश संसद के लिए बाध्यकारी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने कहा कि सीजेआई की सिफारिश संसद के लिए बाध्यकारी नहीं है और संसद को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार है। सिब्बल ने चिंता जताई कि सीजेआई की सिफारिश के बाद संसद के सदस्य इसे आसानी से मान सकते हैं। इस मामले ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जजों के आचरण पर सवाल उठाए हैं, जिसका फैसला अब कोर्ट के अंतिम निर्णय पर निर्भर है।