MP Breaking News
Sat, Dec 20, 2025

मंगेतर की हत्या करने वाली को मिली थी उम्रकैद की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने महिला और बॉयफ्रेंड को क्यों दिया जीवनदान

Written by:Mini Pandey
Published:
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को भावनात्मक और सामाजिक टूटन के दृष्टिकोण से देखते हुए इसे गलत विद्रोह और रोमांटिक भ्रम का परिणाम बताया।
मंगेतर की हत्या करने वाली को मिली थी उम्रकैद की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने महिला और बॉयफ्रेंड को क्यों दिया जीवनदान

सुप्रीम कोर्ट ने एक दुर्लभ फैसले में शुभा शंकर और उसके प्रेमी अरुण की गिरफ्तारी व आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगा दी। हालांकि, 2003 में शुभा के मंगेतर गिरीश की हत्या के मामले में उनकी सजा को बरकरार रखा। कोर्ट ने इसे गलत विद्रोह और रोमांटिक भ्रम का मामला करार देते हुए दोनों को कर्नाटक के राज्यपाल से क्षमादान मांगने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया। कोर्ट ने कहा कि परिवार के दबाव में शुभा की शादी न होती तो एक निर्दोष युवक की जान बच सकती थी। इस अपराध में शुभा के साथ अरुण और दो अन्य (दीनाकरन और वेंकटेश) भी शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट ने सहानुभूतिपूर्ण रुख अपनाते हुए कहा कि अधिकांश आरोपी उस समय किशोर थे और परिवार ने यदि शुभा की भावनाओं को समझा होता तो यह त्रासदी टल सकती थी। कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ उनकी अपील खारिज करते हुए कहा, “एक महत्वाकांक्षी युवती की आवाज को परिवार के जबरन फैसले ने दबा दिया जिससे उसके मन में उथल-पुथल मच गई। गलत विद्रोह और जंगली रोमांटिक भ्रम ने एक निर्दोष युवक की हत्या के साथ-साथ तीन अन्य लोगों का जीवन भी बर्बाद कर दिया।”

रोमांटिक भ्रम का नतीजा

कोर्ट ने इस मामले को भावनात्मक और सामाजिक टूटन के दृष्टिकोण से देखते हुए इसे गलत विद्रोह और रोमांटिक भ्रम का परिणाम बताया। जस्टिस एमएम सुंदरेश और अरविंद कुमार की बेंच ने कहा कि वे चाहते हैं कि अपीलकर्ता, जिन्होंने जघन्य अपराध किया, उन्हें क्षमादान के लिए आवेदन करने का मौका मिले। कोर्ट ने कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत से इस मामले की परिस्थितियों पर ध्यान देते हुए क्षमादान याचिका पर विचार करने का अनुरोध किया। कोर्ट ने आठ सप्ताह तक गिरफ्तारी और सजा को निलंबित रखने का आदेश दिया।

जेल में अच्छे आचरण की भी सराहना

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अपराध के समय 2003 में दो आरोपी किशोर थे जबकि शुभा अभी-अभी किशोरावस्था पार कर चुकी थी। कोर्ट ने उनकी जेल में अच्छे आचरण की भी सराहना की और कहा कि वे जन्मजात अपराधी नहीं थे बल्कि गलत निर्णय और खतरनाक कदम ने उन्हें इस अपराध की ओर धकेल दिया। इसके अलावा, शुभा की साक्ष्य नष्ट करने (धारा 201) के तहत सजा को भी बरकरार रखा गया।