भारत एक ऐसा देश है, जहां सभी समुदाय के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं। यहां सभी नागरिकों को एक समान अधिकार है। देश की 70% आबादी गांव में निवास करती है, जो कि कृषि पर आधारित होते हैं। यहां हर एक चीज का धार्मिक महत्व होता है, जिनमें नदी भी शामिल है। जिन्हें देवी का रूप माना जाता है। लोग इन्हें मां का कर संबोधित करते हैं। यहां करीब 200 से अधिक छोटी और बड़ी नदियां बहती हैं, जो कि कई राज्यों से होकर गुजरती हुई सागर में मिल जाती हैं। सभी नदियां अपने अलग महत्व के लिए जानी जाती है, जिनकी अपनी अलग-अलग कथाएं भी है।
पिछले आर्टिकल्स में हम आपको भारत की सबसे लंबी नदी, भारत की सबसे छोटी नदी, भारत की अपवित्र नदी के बारे में बता चुके हैं, लेकिन आज हम आपको उस नदी से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिससे मीठे पानी वाली नदी कही जाती है।

नदी एक आस्था
भारत की संस्कृति नदियों के बिना अधूरी है। यह जमीन को हरी भरी और उपजाऊ बनाती है। इसके अलावा, यह मनुष्य के जीवन में बहुत बड़ा स्रोत है, क्योंकि लोग इसके पानी को फिल्टर करके रोजाना के इस्तेमाल में प्रयोग करते हैं। हमारे देश में नदियां आस्था से भी जुड़ी हुई है, जिनकी पूजा होती है। खास अवसर पर लोग यहां पर डुबकी लगाकर अपनी मान्यताओं को पूरी करते हैं। आज हम आपको भारत की सबसे मीठी पानी वाली नदी के बारे में बताएंगे। साथ ही यह भी बताएंगे कि यह कौन से स्थान में बहती है।
तुंगभद्रा नदी (Tungabhadra River)
दरअसल, इस नदी का नाम तुंगभद्रा नदी है, जो कि कर्नाटक में बहती है। यह नदी कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले और शिमोगा जिले से होकर बहती है। इसे सबसे मीठी पानी की नदी कहा जाता है, जो कि वराह पर्वत से निकलती है। यह नदी 147 किलोमीटर लंबी है। यह नदी कृष्णा नदी की मुख्य सहायक नदी भी है, जो कि कर्नाटक से होकर आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी में मिल जाती है। मान्यताओं के अनुसार, इस नदी को लेकर एक कहावत भी प्रचलित है। जिसके तहत, “गंगा स्नान तुंगा पाना” यानी गंगा में स्नान करें और तुंगा में पानी पिए।
पौराणिक कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्याक्ष राक्षस को वध करने के बाद वराह स्वामी को जब थकान महसूस हुई, तब वह विश्राम करने के लिए पर्वत पर पहुंचे। जब भी शिखर पर बैठे तो उनकी खोपड़ी से पसीना बहने लगा। उनके सिर के बाएं तरफ जो पसीना बहत रहा था, वह तुंगा नदी बनी और जो पसीना दाहिनी ओर से बहा उसे भद्रा नदी के नाम से जाना गया। इस प्रकार नदी का निर्माण हुआ, जिसे तुंगभद्रा नदी के नाम से जाना गया।
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