सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल हाई कोर्ट के फैसले को चैलेंज करने वाली एक याचिका पर बड़ी बात कही है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं बांटा जा सकता है। बता दें कि यह मामला 77 जातियों को ओबीसी में शामिल करने का है। हालांकि इन 77 जातियों में ज्यादातर जातियां मुस्लिम बताई जा रही है। जिसके चलते इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आरक्षण को धर्म के हिसाब से नहीं दिया जा सकता है।
वहीं पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि “यह धर्म के आधार पर दिया गया आरक्षण नहीं है।” कपिल सिब्बल ने कहा कि क्या सिद्धांत रूप में मुस्लिम आरक्षण के हकदार हैं या नहीं? सिब्बल का कहना है कि पश्चिम बंगाल सरकार का यह फैसला पिछड़ेपन को देखकर लिया गया है ना कि धर्म को देखकर।
जानिए कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
पश्चिम बंगाल की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने सरकार का पक्ष रखा और कहा कि ‘पिछड़ापन सभी समुदायों में देखने को मिलता है।’ कपिल सिब्बल ने कहा कि “मुस्लिम ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण को रद्द करने वाले आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लोग लगा दी है और मामला अभी भी लंबित है।” हालांकि मामले की विस्तृत सुनवाई अब 7 जनवरी को की जाएगी। कोर्ट ने इस दौरान इस मामले में पश्चिम बंगाल को कड़ी फटकार लगाई। बता दें कि हाई कोर्ट ने मुस्लिम जातियों को आरक्षण में शामिल करने पर मुस्लिम समुदाय का अपमान बताया था।
हाई कोर्ट की इस याचिका पर हुई सुनवाई
दरअसल हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था। हाई कोर्ट का मानना था कि इससे मुस्लिम समुदायों का अपमान होगा। कोर्ट ने कहा था कि वास्तव में इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धर्म ही एकमात्र मानदंड रहा है। मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ा वर्ग के रूप में चुना जाना मुस्लिम समुदाय का अपमान है।
कहां-कहां मुसलामानों को मिलता है आरक्षण?
दरअसल मुसलमानों के आरक्षण पर नजर डाली जाए तो मुसलमानों की 36 जातियों को केंद्र स्तर पर आरक्षण मिलता है। संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में इसकी व्यवस्था की गई है। इसके के मुताबिक नौकरियों में आरक्षण दिया जा सकता है। इसके साथ ही जिन परिवारों की सालाना कमाई ₹8 लाख से ज्यादा है। उन्हें आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। हालांकि यह साफ तौर पर है कि सरकार के निर्णय के ऊपर यह निर्भर करता है कि नौकरियों में किसे आरक्षण देना है और किसे नहीं।