भारत की असल पहचान गांव से होती है, जहां लोग कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन इत्यादि पर निर्भर होते हैं। गांव में कुछ परिवार रहते हैं, जो कि एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं। यहां देश की परंपरा, संस्कृति, रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। महिलाएं एक-दूसरे से मिलजुल कर काम में हाथ बंटाती हैं, बच्चे मिट्टी से जुड़े होते हैं, अर्थात वे खेत-खलिहान में खेल कर बड़े होते हैं। पहले गांव में अलग ही रौनक देखने को मिलती थी। हालांकि, अब समय के साथ बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका है, लेकिन अब भी लोग सदियों पुरानी चली आ रही रीति-रिवाज को नहीं भूले हैं।
इन दिनों भारत में शहरों की बजाय विलेज टूरिज्म की ओर पर्यटक ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, यहां लोगों को कल्चर बहुत ही नजदीक से देखने और जानने का मौका मिलता है। सरकार द्वारा भी इसे बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत का इकलौता गांव
हालांकि, आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां की अनोखी परंपरा को जानकर आप दंग रह जाएंगे। साथ ही यह सोचने पर भी मजबूर हो जाएंगे कि क्या सच में ऐसा संभव है। जी हां! आज हम आपको जिस गांव से रूबरू करवाने जा रहे हैं, वहां की खासियत आप सभी को अचंभित कर देने वाली है। यहां की संस्कृति, पंरपराएं और मान्यताएं सब कुछ अलग है। यहां के लोग बिना किसी चिंता और डर के रात में अपने घरों का दरवाजा खोलकर सोते हैं।
शनि शिगणापुर (Shani Shingnapur)
दरअसल, इस गांव का नाम शनि शिगणापुर है, जो कि महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है। इस गांव में एक भी घर में दरवाजा नहीं लगा है। इसके बावजूद, यहां 300 सालों में एक बार भी चोरी नहीं हुई है। जी हां, सुनकर हैरानी हुई ना। यहां लोग घरों में ताला लगाने के बाद भी चिंतित रहते हैं कि कहीं उनकी गैरमौजूदगी में चोरी-डकैती ना हो जाए। कई बार तो घर में लोगों के रहते हुए चोरी हो जाती है, लेकिन इस गांव में आजतक चोरी नहीं हुई है।
बैंकों में नहीं लगते ताले
यहां तक की इस में स्थित बैंक में भी दरवाजे नहीं लगे है। यह शायद ही दुनिया का पहला ऐसा गांव होगा, जहां घर बिना दरवाजा के है, बड़ी-बड़ी दुकानों में भी ताले नहीं लगाए जाते हैं। चोर यहां किसी भी चीज को छूने से कतराते हैं, पिछले 300 सालों में यहां एक भी चोरी नहीं हुई है। 24 घंटे घर का मुख्य प्रवेश द्वार खुला रहता है। हालांकि, जानवरों से बचने के लिए लोग लकड़ी की एक बेडा लगा देते हैं। कम आबादी वाले इस गांव के लोग अपने घरों में अलमारी या सूटकेस नहीं रखते हैं, बल्कि सोने, जेवर, पैसे इत्यादि को किसी कपड़े में ढककर या फिर किसी डिब्बे में घर के किसी भी स्थान पर रख देते हैं।
नहीं लगे हैं एक भी दरवाजे
स्थानीय लोगों की माने तो यहां जब भी मेलों का आयोजन होता है, तब भी लोग अपने घरों में दरवाजा नहीं लगाते, बल्कि यह हमेशा की तरह खुला ही रहता है। आसपास के लोग भी यहां अक्सर आते-जाते रहते हैं। तब भी आजतक कोई अनहोनी यहां नहीं हुई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यूको बैंक ने इस गांव में पहली लॉकलेस ब्रांच इंस्टॉल किया है। लोगों की मान्यता को बरकरार रखते हुए उन्होंने दरवाजे पर कोई लॉक नहीं लगाया, बल्कि सिर्फ शीशे का एंट्रेंस बनाया है।
पौराणिक कथा
दरअसल, गांव में घरों पर दरवाजा नहीं होने के पीछे पौराणिक कथा है। पौराणिक कथाओं की मानें तो एक बार गांव में भारी वर्षा हुई थी, उस परास नाला नदी में काली चट्टान का एक बड़ा शीला बहकर आया। जब लोगों ने उसे दबाकर देखा तो उन्होंने इसे तोड़ना चाहा, जब उन्होंने ऐसा किया तो उसमें से खून बह रहा था। इसके बाद भगवान शनि देव गांव के मुखिया के सपने में आए और उन्होंने कहा कि यह चट्टान का टुकड़ा मेरा ही स्वरूप है। ऐसे में उन्होंने गांव में एक मंदिर बनाने का आदेश दिया, साथ ही यह कहा कि मंदिर में कोई नहीं रहना चाहिए। उन्होंने मुखिया से यह भी कहा कि वह इस गांव की हमेशा रक्षा करेंगे।
यह गांव शनि देव के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, यहां शनि देव की 5 फीट ऊंची मूर्ति स्थित है। यहां हर शनिवार को ग्रामीण एकत्रित होते हैं और विधि विधान पूर्वक उनकी पूजा अर्चना करते हैं। न्याय के देवता कहे जाने वाले शनि देव मनुष्य के हर अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब रखते हैं, ऐसे में गांव के लोगों का उन पर अटूट आस्था और विश्वास है।





