जेल ने बना दी जोड़ी, हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी बने समधी

Prisoners married their children to each other : आज तक हमने सुना है कि जोड़ियां आसमान में बनती है..लेकिन क्या कभी आपने ये सुना है कि जोड़ियां जेल में भी बन सकती हैं। ऐसा ही एक अनोखा मामला सामने आया है उत्तर प्रदेश के कौशांबी से। फिल्मों में हमने अक्सर देखा है कि जेल में सजा काट रहे दो लोग आपस में पक्के दोस्त बन जाते हैं और इस दोस्ती को निभाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। असल दुनिया में भी ऐसे कई किस्से देखे सुने गए जहां जेल के भीतर लोगों में दोस्तियां हुई और फिर उन्होने मिसाल कायम की। लेकिन ये दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाए, ऐसा कम ही होता है।

पिपरी थाना क्षेत्र के कटहुला गांव निवासी धारा सिंह हत्या के मामले में कौशांबी जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। जेल में ही उसकी मुलाकात अर्जुन सिंह यादव से हुई और इसे भी हत्या के ही मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई है। दोनों में धीरे धीरे दोस्ती हुई और फिर ये दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि इन्होने जेल में ही अपने बच्चों की शादी तक कर दी। यहां खास बात ये कि धारा सिंह का बेटा सुमित सिंह भी अपने पिता के साथ ही जेल की सजा काट रहा था और कुछ समय पहले ही 10 साल की सजा पूरी होने के बाद  रिहा हुआ था। अर्जुन यादव को 26 साल का सुमित इतना पसंद आ गया कि उन्होने उससे अपनी बेटी की शादी तय कर दी।

बुधवार को इन दोनों कैदियों के बच्चे आपस में विवाह बंधन में बंध गए और ये दोनों समधी बन गए। कौशांबी जिला जेल प्रभारी जेलर भूपेश सिंह ने बताया कि शादी की रस्में निभाने के लिए दोनों कैदियों के पैरोल पर छोड़ा गया। पुलिस अर्जुन सिंह और धारा सिंह को लेकर वैवाहिक स्थल पर पहुंची। अर्जुन सिंह को 21 दिन की और धारा सिंह को चार दिन की पैरोल पर छोड़ा गया है। पैरोल के बाद दोनों कैदी फिर जेल चले जाएंगे लेकिन इस सजा ने उनके बच्चों को आपस में जीवनसाथी बना दिया। उनकी दोस्ती पर अब हमेशा के लिए पक्का स्टैंप लग गया है और इस शादी के बाद वो और उनके घरवाले सभी बेहद खुश हैं।


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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