गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपानी का अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश में दुखद निधन हो गया। विजय रुपानी, एक ऐसा नाम जिसने म्यांमार के यंगून से शुरू होकर गुजरात के मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया। RSS के स्वयंसेवक से लेकर BJP के दिग्गज नेता तक, उनकी कहानी मेहनत और सादगी की मिसाल है। चलिए इस खबर में जानते हैं कैसे गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने संघ कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक लंबा सफर तय किया।
म्यांमार के यंगून में 1956 में जन्मे विजय रामनिकलाल रुपानी का बचपन साधारण था। 1960 में उनका परिवार भारत आया और राजकोट में बस गया। छोटी उम्र में ही विजय का मन देशसेवा की ओर मुड़ा। 1971 में, 15 साल की उम्र में, वह RSS और जनसंघ से जुड़े। कॉलेज में ABVP के साथ उन्होंने छात्रों को संगठित किया। 1975 का आपातकाल उनके लिए बड़ी परीक्षा था। इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से उन्हें जेल हुई, लेकिन हिम्मत नहीं टूटी। यह वह दौर था जब विजय ने ठान लिया कि वह देश के लिए कुछ बड़ा करेंगे।
पहली बार राजनीति में कब रखा कदम?
1987 में विजय ने राजकोट नगर निगम में कॉरपोरेटर के रूप में कदम रखा। उनकी मेहनत रंग लाई, और 1996 में वे राजकोट के मेयर बने। लोग उनकी सादगी और काम के जुनून की तारीफ करने लगे। 2006 में वह गुजरात टूरिज्म के चेयरमैन बने, फिर उसी साल राज्यसभा सांसद चुने गए। 2014 में राजकोट वेस्ट से विधायक बनने के बाद वह आनंदीबेन पटेल की सरकार में मंत्री बने। हर कदम पर उनकी मेहनत और BJP संगठन में निष्ठा उन्हें आगे ले गई। 2016 में, जब आनंदीबेन ने इस्तीफा दिया, BJP ने विजय को गुजरात का मुख्यमंत्री चुना। यह उनके लिए सपने जैसा पल था।
जानिए गुजरात के CM बनने तक का सफर
मुख्यमंत्री बनने के बाद विजय का असली इम्तिहान शुरू हुआ। 2016 में गुजरात में पटेल आंदोलन चरम पर था। विजय ने धैर्य से इसे संभाला, लेकिन चुनौतियां कम नहीं थीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने BJP को जीत दिलाई, मगर सीटें 99 तक सिमट गईं। फिर भी, वह दोबारा CM बने। उनकी सरकार ने 2 लाख नौकरियां दीं, FDI में गुजरात को शीर्ष पर रखा, और श्रमिक अन्नपूर्णा जैसी योजनाएं शुरू कीं। 2017 की बाढ़ में उनका रेस्क्यू मिशन लोगों के दिलों में बसा। लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर ने मुश्किलें बढ़ाईं। प्रबंधन की आलोचना के बीच 11 सितंबर 2021 को उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया। लोग हैरान थे, मगर विजय ने इसे पार्टी के हित में बताया था।
वहीं इस्तीफे के बाद विजय ने पंजाब में BJP प्रभारी की जिम्मेदारी संभाली। 2022 में उन्होंने राजकोट वेस्ट से चुनाव न लड़ने का फैसला किया, जिसे BJP की नई रणनीति से जोड़ा गया। उनकी सादगी और संगठन कौशल ने उन्हें अमित शाह का भरोसेमंद बनाया, मगर CM के बाद उनकी भूमिका सीमित रही।





