स्वीडन में लागू हुआ अन्ना हजारे के गांव रालेगण सिद्धि का जल मॉडल

पानी की किल्लत सिर्फ हमारे देश में नहीं बल्कि दुनियाभर में बढ़ती जा रही है। ऐसे में दुनिया के कई देश पानी की समस्या को हल करने के लिए नई तकनीकों पर काम कर रहे हैं। ऐसे में भारत को अपने एक गांव पर गर्व करना चाहिए, जिसकी पानी बचानी की तकनीक सीखने के लिए दूसरे देश से लोग आ रहे हैं।

 सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के कारण मशहूर हुआ उनका गांव रालेगण सिद्धि अब वैज्ञानिकों के लिए लिये प्रेरणास्त्रोत बन गया है। दरअसल बाल्टिक सागर में एक स्वीडिश द्वीप भूजल रिचार्जिंग परियोजना के लिए दुनियाभर में प्रेरणस्त्रोत बन गया है. यहां गर्मियों के समय में पीने का पानी काफ़ी मुश्किल से। माना जाता है कि यहां पानी की किल्लत की वजह स्ट्रॉसड्रेट की मिट्टी की पतली परत में छिपी है इससे बारिश का पानी भूजल रिचार्ज नहीं कर पाता है। ऐसे में आईवीएल स्वीडिश पर्यावरण अनुसंधान संस्थान की विशेषणज्ञ रूपाली देशमुख ने जल संचय के लिए भारत के गांवों के परंपरागत तरीकों पर रिसर्च के बारे में सोचा और इसे नई तकनीक से जोड़कर भी देखा जिसके बाद उन्हें रालेगण सिद्धी का खयाल आया। उन्होंने पाया कि रालेगण सिद्धी और स्ट्रॉसड्रेट की भौगोलिक स्थिति लगभग एक जैसी है जिसके बाद उन्होने रालेगण सिद्धी पर रिसर्च किया। यहीं से उन्हें डैम चेक और तालाब आदि परंपरागत जल संचय के साधनों के इस्तेमाल की जानकारी मिली,  स्वीडन में इन चीजों का पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ था। अब बाल्टिक सागर में स्वीडन के द्वीप गॉटलैंड के जल-संकट को दूर करने के लिए रालेगण सिद्धि के मॉडल पर भूजल रिचार्जिंग परियोजना लागू की गई है और इसके ज़रिये वहां जलसंकट पर काबू पाने का प्रयास किया जा रहा है।


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