पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच बंगाली प्रतीकों को अपने पक्ष में करने की होड़ तेज हो गई है। इस बार विवाद का केंद्र कोलकाता का सियालदह रेलवे स्टेशन है, जो हावड़ा के बाद राज्य का सबसे व्यस्त स्टेशन है। दोनों पार्टियां इस स्टेशन के नामकरण को लेकर आमने-सामने हैं, जिससे सियासी माहौल गरमा गया है।
केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजुमदार ने रविवार को कोलकाता में पहली वातानुकूलित लोकल ट्रेन को हरी झंडी दिखाते हुए सुझाव दिया कि सियालदह स्टेशन का नाम भाजपा के संस्थापक सदस्य और कोलकाता में जन्मे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर किया जाए। उन्होंने कहा, “हम राज्य सरकार से आग्रह करते हैं कि वे केंद्र को पत्र लिखकर सियालदह स्टेशन का नाम डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी टर्मिनस करने का प्रस्ताव दें, फिर हम इसे आगे बढ़ाएंगे।”
टीएमसी का भाजपा पर पलटवार
इसके जवाब में तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा पर पलटवार करते हुए स्टेशन का नाम समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद के नाम पर करने का प्रस्ताव रखा। टीएमसी के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने कहा, “कोलकाता बंदरगाह का नाम पहले ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर है। एक और स्थान का नाम उनके नाम पर क्यों? इसके बजाय, स्टेशन का नाम स्वामी विवेकानंद के नाम पर होना चाहिए।” घोष ने दावा किया कि स्वामी विवेकानंद जब शिकागो में विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण देकर लौटे थे, तो सियालदह स्टेशन पर उनका भव्य स्वागत हुआ था।
बंगालियों और बंगाली भाषा का अपमान
पिछले कुछ हफ्तों में टीएमसी ने भाजपा पर बंगालियों और बंगाली भाषा का अपमान करने का आरोप लगाया है। भाजपा शासित राज्यों में प्रवासी श्रमिकों पर कथित हमलों और दिल्ली पुलिस के एक संदेश में बंगला को बांग्लादेशी भाषा कहे जाने पर टीएमसी ने कड़ा ऐतराज जताया था। इस विवाद ने राज्य के नागरिकों और राजनीतिक दलों में भी तीखी प्रतिक्रिया उकसाई है।




