हालांकि कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को पत्र लिखकर अपने कहे शब्द पर खेद जताया है। उन्होंने कहा कि उनकी हिंदी ठीक नहीं है इसलिए जुबान फिसल गई। उधर भाजपा का कहना है कि जब अपमान सार्वजनिक रूप से किया है तो माफी भी सार्वजनिक रूप से मांगनी होगी। बहरहाल अभी ये मामला ठंडा नहीं हुआ है।
अब हम आपको बताते है कि भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति ही क्यों कहा जाता है? इसे जेंडर के अनुसार बदला क्यों नहीं जा सकता। इसका इतिहास बहुत पुराना है और जब इस शब्द को तय किया गया था तब भी ये चर्चा हुई थी कि यदि इस पद पर कोई महिला बैठेगी तो क्या होगा ? फिर निर्णय हुआ कि महिला हो या पुरुष वो देश का राष्ट्रपति ही कहलायेगा।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति शब्द को अंग्रेजी में प्रेसीडेंट कहते हैं, इस शब्द का किसी लोकतान्त्रिक देश सबसे पहले अमेरिका के शासक के लिए हुआ था। जॉर्ज वाशिंगटन को सबसे पहले प्रेसीडेंट कहा गया था। प्रेसीडेंट शब्द फेन्स और लेटिन दो शब्दों को मिलकर बना है।
आजादी से पहले संविधान सभा में भारत में भी राष्ट्रपति शब्द पर चर्चा हुई। तब कहा गया कि अंग्रेजी में तो प्रेसीडेंट ठीक है लेकिन हिंदी में इसे राष्ट्रपति कहना ठीक नहीं होगा। तब इस पर बहुत चर्चा और बहस हुई। जुलाई 1947 में राष्ट्रपति की जगह “राष्ट्रकर्णधार” और “राष्ट्र नेता” जैसे शब्द सुझाये गए। लेकिन इसपर सहमति नहीं बनी।
बाद में ये मामला एक समिति को सौंप दिया गया, फिर तय हुआ कि प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया के लिए राष्ट्रपति शब्द ही इस्तेमाल होगा। दिसंबर 1948 में इस पर फिर बहस शुरू हुई। अंबेडकर ने “हिंद का एक प्रेसीडेंट” कहकर इसे संविधान मसौदे में रखने के लिए कहा, अंग्रेजी में इसे प्रेसीडेंट ही कहा गया।
लेकिन इसपर भी सहमति नहीं बनी , फिर हिंदी में मसौदे में इसे “प्रधान” लिखा गया और उर्दू में “सरदार”, संविधान सभा के सदस्य केटी शाह ने प्रेसीडेंट के लिए ” द चीफ एक्जीक्यूटिव” और राष्ट्रपति के “राष्ट्र का प्रधान” शब्दों का सुझाव दिया। लेकिन यहाँ भी सहमति नहीं बनी। अंत में जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजी के लिए “प्रेसीडेंट” और हिंदी के लिए “राष्ट्रपति” शब्द पर मुहर लगा दी। तब से भारत के राष्ट्रपति पद पर चाहे पुरुष बैठे या महिला , वो राष्ट्रपति ही कहलाता है।