इटावा, डेस्क रिपोर्ट। शादी के 18 साल बाद भी बच्चा न होने से परेशान एक महिला ने कुछ ऐसा किया, जिसे जानकर अब सब हैरान हैं। ये अजीबोगरीब मामला तब सामने आया जब एक महिला और कुछ लोग प्लास्टिक की गुड़िया को लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे, वो उसका चेकअप कराना चाहते थे।
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घटना उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में बढ़पुरा विकास खंड क्षेत्र की है। यहां ग्राम रमी का बर में रहने वाली 38 साल की सीमा देवी की शादी 18 साल पहले सत्येंद्र कुमार के साथ हुई थी। लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी उनके घर कोई संतान नहीं हुई। इस बात को लेकर अक्सर ही घरवाले और पास पड़ौस के लोग महिला को बांझ होने का ताना देते थे। इससे परेशान सीमा ने कुछ ऐसा किया, जो किसी टीवी सीरियल की कहानी की तरह है। उसने करीब 6 महीने पहले घरवालों को बताया कि वो प्रेग्नेंट है। इसके बाद वो गर्भवती (fake pregnancy) होने का स्वांग करती रही। छह महीने बीत जाने के बाद एक दिन उसने कहा कि उसका गर्भपात हो गया है। इसी के साथ एक अजीब सी दिखने वाली प्लास्टिक की गुड़िया (plastic doll) को भ्रूण कहकर घरवालों को दिखा दिया।
बुधवार को जब उसने अबॉर्शन की बात कही तो उसकी सास उषा देवी ने गांव की आशा कार्यकर्ता को इसकी सूचना दी और घर पर बुलाया। आशा कार्यकर्ता को मामला कुछ संदेहजनक लगा तो उसने चेकअप के लिए सीएचसी चलने को कहा। इस दबाव के कारण सीमा को अस्पताल जाना पड़ा और जब वो वहां पहुंची तो डॉक्टरों ने बताया कि जिसे घरवाले भ्रूण बता रहे हैं वो असल में प्लास्टिक की गुड़िया है। मामला सामने आने पर भौचक्के रह गए। इसके बाद डॉक्टरों ने सीमा से प्रेग्नेंसी के दौरान किए जाने वाले इलाज का प्रिस्क्रिप्शन मांगा तो वो दे न सकी। बाद में पता चला कि वो इतने समय से प्रेग्नेंसी के नाम पर पेट में संक्रमण का इलाज कराने आती थी। डॉक्टरों ने जब मामले में सख्ती से पूछताछ की तो घरवाले प्लास्टिक की गुड़िया को वहीं छोड़कर भाग गए।
हालांकि पहली नज़र में देखने पर इस घटना में महिला की गलती लगती है, लेकिन ये भी सोचने वाली बात है कि आखिर उसे इतना बड़ा नाटक करने की जरुरत क्यों पड़ी। लगातार इतने सालों से बच्चा न होने पर ताने सुनते सुनते वो इस कदर परेशान हो चुकी थी कि उसे ऐसा करने पर बाध्य होना पड़ा। आज भी हमारे समाज में बच्चा न होने का ज्यादातर सारा दोष महिला पर ही डाल दिया जाता है और उसे समाज में कई तरह की प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। ये घटना फिर इसी बात को साबित करती है कि बांझ जैसे शब्दों से किसी महिला के आत्मसम्मान और गरिमा को किस कदर रोंदा जाता है और फिर ऐसी किसी घटना पर भी उसे ही दोषी माना जाता है।