21 तोपों की सलामी…

किसी भी साहसिक कार्य की प्रशंसा करनी हो तो हम अक्सर इस कहावर का इस्तेमाल करते हैं कि इस बात के लिये तो 21 तोपों की सलामी दी जानी चाहिए। ये महज़ एक कहावत नहीं है बल्कि सेना में भी अलग अलग अवसरों पर तोपों की सलामी देने की परंपरा है। गणतंत्र दिवस पर भी राष्ट्रगान के दौरान 21 तोपों की सलामी दी जाती है। लेकिन आखिर तोपों की सलामी की परंपरा पड़ी क्यों, और 21 तोपों की सलामी को ही श्रेष्ठ क्यों माना जाता है ? आईये जानते हैं 21 तोपों की सलामी के पीछे की कहानी…

दरअसल तोपों का चलन शताब्दियों पुराना है, मध्ययुगीन शताब्दी में तो सिर्फ सेना नहीं बल्कि व्यापारी भी तोपें चलाते थे। उस समय अक्सर लंबी दूरी समुद्री रास्ते से तय की जाती थी। जब कोई सेना दूसरे देश में जाती तो वहां पहुंचने के बाद तोप दागती थी जिससे ये ऐलान हो जाता कि वो अपने लक्ष्य तक पहुंच गए हैं। वे इसके ज़रिये ये संदेश भी देते थे कि वे यहां युद्ध के लिये नहीं आए हैं। इस तरह तोप से फायरिंग एक प्रतीक बन गई। सेना की इस परंपरा की देखादेखी व्यापारियों ने भी इसे अमल में लाना शुरू कर दिया। इस तरह तोपें दागकर सेना और व्यापारी ये ज़ाहिर करते थे कि वे किसी अन्य देश में युद्ध के उद्देश्य से नहीं आए हैं। उस समय सेना व व्यापारियों द्वारा 7 तोपों से फायरिंग की जाती थी।


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न्यूज डेस्क, Mp Breaking News

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