बाजरा की खरीदी न होने पर किसानों ने कलेक्टर के बंगले का किया घेराव

मुरैना, संजय दीक्षित। बाजरा की समर्थन मूल्य की खरीदी ना होने के कारण आज किसान सैकड़ों की संख्या में कलेक्टर के बंगले पर शिकायत करने पहुँचे। किसानों का कहना था कि करीब 5 दिन से गल्ला मंडी में बाजरा खरीदने के लिए ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर खड़े थे लेकिन किसानों का बाजरा न खरीदते हुए व्यवसायियों का बाजरा खरीदा जा रहा है। जबकि शासन के द्वारा किसानों के मोबाइल पर एसएमएस के जरिए सूचना भी दी गई थी। जिसे लेकर किसान वेयर हाउस और गल्ला मंडी के पास करीब 5 दिन से बाजरा से भरी ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर खड़े हुए हैं ,लेकिन प्रशासन ने कोई भी सुनवाई नहीं की है बरसात में बाजरा भी भीग गया हैं।दीपावली का त्यौहार मनाने के लिए घर भी नही पहुंचे है।

5 दिन से रोड पर बैठकर पूरी रात ठंड में बिताई हैं, लेकिन प्रशासन के कानों तक गरीब किसानों की आवाज नही पहुँच रही हैं। जिसको लेकर आज कलेक्टर के बंगले पर एकत्रित हुए है। गल्ला मंडी में बाजरा बेचने के लिए आए तो अधिकारियों का कहना है कि संख्या अधिक होने पर शहर से दूर करीब 5 किलोमीटर करुआ   गांव में जाकर ही बाजरा की तुलाई की जाएगी। उसके बाद 5 किलोमीटर दूर करूंगा गांव में तुलाई के लिए भेजा जा रहा है।इसलिए कलेक्टर के बंगले का घेराव किया है।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।