पति की सलामती के लिए मुस्लिम महिला ने रखा करवा चौथ, मिली तौबा करने की नसीहत

Gaurav Sharma
Published on -
Karwa Chauth 2023

लखनऊ,डेस्क रिपोर्ट। पति की सलामती के लिए रखे जाने वाला करवा चौथ (karwa chauth) व्रत का खुमार सिर्फ हिंदू महिलाओं (Hindu ladies) में ही नहीं बल्कि मुस्लिम महिला (Muslim lady) में भी देखने को मिला। इस साल गंगा-जमुनी तहजीब के तहत एक मुस्लिम महिला ने भी अपने पति की लंबी उम्र के लिए दिन भर भूखा प्यासा रहकर उपवास रखा, साथ ही रात को चांद (moon) के दीदार के बाद अपना व्रत खोला। ये महिला लखनऊ (lucknow) के सरहानपुर की रहने वाली गुलनाज अंजुम है, जिन्होंने अपने पति की अनुमति के बाद ही इस व्रत को रखने का फैसला किया, पर गुलनाज को क्या पता था कि उसका ये व्रत इस्लाम के खिलाफ ही बता दिया जाएगा।

गुलनाज अंजुम (gulnaz anjum) और उनके पति का मानना था कि इस व्रत को करने से हिंदू (Hindu) और मुस्लिम (Muslim) लोगों के बीच में प्रेम(love) और भाईचारा (unity) बढ़ेगा। साथ ही भाईचारे को बढ़ाने के लिए दोनों को एक दूसरे के त्योहार (festival) मनाते रहना चाहिए,इससे आपसी सौहार्द (Mutual harmony) बढ़ती है। पर ये दंपत्ति जो आपसी सौहार्द (Mutual harmony) को बढ़ाने के बारे में सोच रहा था उसे क्या पता था कि उन्हीं के धर्म के लोग उनके इस काम से नाराज हो जाएंगे और तौबा करने की नसीहत दे देंगे।

मुस्लिम महिला गुलनाज अंजुम द्वारा रखे गए व्रत को मदरसा जामिया शेखुल हिंद के मोहतमिम मुफ्ती असद कासमी ने  इस्लाम के खिलाफ करार दिया है। मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि दूसरे धर्म के हिसाब से उपवास करना इस्लाम में जायज नहीं माना जाता है। साथ ही मुफ्ती ने गुलनाज को तौबा करने की समझाईश (Advice) दी है।

वहीं देवबंद फतवा आन मोबाइल सर्विस के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारूकी ने भी महिला के उपवास रखने पर आपत्ति जताई है। मुफ्ती अरशद फारूकी का कहना है कि दूसरे धर्म की खास चीजों को अपनाना या उनकी तरह क्रिया कलापों को करना इस्लाम में मंजूर नहीं है। दूसरे धर्म की इबादत इस्लाम के विरोध है। अगर कोई किसी अन्य धर्म के त्योहार, उपवास करता है तो वो कुछ और नहीं केवल ढ़ोंग है। जो कोई भी करवा चौथ  मना रहे है उनका ताल्लुक मजहबी इस्लाम से  नहीं हो सकता।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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