केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल शनिवार को जोधपुर पहुंचे, जहां एयरपोर्ट पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इस दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने राहुल गांधी समेत विपक्षी नेताओं पर जमकर हमला बोला। मेघवाल ने कहा कि विपक्ष संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक परंपरा है। उन्होंने आरोप लगाया कि खासकर राहुल गांधी चुनाव आयोग, न्यायपालिका और अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ चर्चा पर विपक्ष को घेरा
मेघवाल ने संसद के मॉनसून सत्र में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हुई चर्चा का जिक्र करते हुए कहा कि विपक्ष ने इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की थी, जिसे सरकार ने स्वीकार किया। लोकसभा और राज्यसभा दोनों में चर्चा हुई, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष ने गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाया। उन्होंने कहा कि गृह मंत्री का भाषण न सुनना और प्रधानमंत्री की गैर-मौजूदगी को मुद्दा बनाना संसदीय मर्यादा के खिलाफ है। प्रधानमंत्री लोकसभा में अपनी बात रख चुके थे, इसलिए राज्यसभा में उनकी मौजूदगी जरूरी नहीं थी। इसे परंपरा और संविधान का अपमान बताते हुए मेघवाल ने विपक्ष की नीयत पर सवाल उठाया।
बिहार चुनाव और चुनाव आयोग पर टिप्पणी
बिहार चुनाव को लेकर मेघवाल ने कहा कि चुनाव आयोग देश के कई राज्यों में S.I.R. करवा चुका है, फिर भी विपक्ष इसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है। राहुल गांधी पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, “अगर कोई व्यक्ति मर चुका है, तो क्या उसका नाम वोटर लिस्ट में होना चाहिए? इतनी सी बात भी राहुल गांधी नहीं समझ पा रहे हैं और उल्टा चुनाव आयोग को धमका रहे हैं।” मेघवाल ने चेतावनी दी कि संवैधानिक संस्थाओं को इस तरह से निशाना बनाना लोकतंत्र के लिए सही संकेत नहीं है।
मालेगांव केस पर कांग्रेस को घेरा
मालेगांव विस्फोट मामले पर भी मेघवाल ने कांग्रेस पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के दौरान ‘हिंदू आतंकवाद’ का झूठा नैरेटिव गढ़ा गया, जिसका कोई सबूत नहीं था। तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम और सुशील कुमार शिंदे ने इस प्रोपेगेंडा को हवा दी, जिससे देश की एकता को नुकसान पहुंचा। मेघवाल का यह बयान ऐसे समय आया है जब विपक्ष लगातार सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है। आने वाले दिनों में यह राजनीतिक टकराव और तेज हो सकता है, जिसका असर सियासी माहौल और चुनावी रणनीतियों पर पड़ना तय है।





