कृषि विभाग ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत आने वाले वर्षों में किसान अपने खुद के ब्रांड नाम से जैविक गेहूं, बाजरा, मक्का, सोयाबीन जैसी फसलें बेच सकेंगे। विभाग किसानों को जैविक उत्पादों की बिक्री के लिए विशेष प्लेटफार्म भी उपलब्ध कराएगा। इस पहल से किसानों को उनकी फसलों का भाव सामान्य से करीब तीन गुना अधिक मिलने की उम्मीद है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और रासायनिक खेती पर निर्भरता घटेगी।
कृषि विभाग की नई पहल
कृषि विभाग ने योजना को बड़े स्तर पर लागू करने की तैयारी की है। शुरुआत में चित्तौड़गढ़ जिले में करीब 10 हजार हैक्टेयर भूमि पर जैविक गेहूं, मक्का, चना, सरसों, सोयाबीन और अन्य फसलों की खेती करवाई जाएगी। विभाग के अधिकारियों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए इस पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इसे अब राज्य स्तर पर व्यापक रूप से लागू किया जा रहा है। जिले में किसानों को कलस्टर बनाकर जोड़ा जाएगा ताकि एक ही क्षेत्र में संगठित रूप से जैविक उत्पादन किया जा सके।

योजना के तहत किसानों को जैविक खाद और बीज नि:शुल्क मुहैया करवाए जाएंगे। साथ ही किसानों को अपने खेतों में वर्मी कम्पोस्ट यूनिट तैयार करनी होगी, जिसके लिए सरकार अनुदान देगी। वर्मी कम्पोस्ट में इस्तेमाल होने वाले केंचुए भी विभाग द्वारा अनुदान पर उपलब्ध करवाए जाएंगे। कलस्टर के चारों ओर बफर जोन बनाने के लिए दीवार निर्माण पर भी अनुदान दिया जाएगा। इसके अलावा किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि वे वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन कर सकें।
कृषि विभाग की निगरानी में होगी जैविक खेती
तीन साल तक कृषि विभाग की निगरानी में जैविक खेती करने के बाद किसानों को जैविक उत्पाद का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा। इसके बाद वे अपने उत्पाद को बाजार में ब्रांड के रूप में बेचने के हकदार होंगे। जैविक फसलें रासायनिक उर्वरकों से मुक्त होने के कारण बाजार में सामान्य फसलों की तुलना में तीन गुना अधिक कीमत पर बिकती हैं, जिससे किसानों को बेहतर आय मिलेगी और उपभोक्ताओं को शुद्ध उत्पाद।
इस अवधि में हर साल कलस्टर क्षेत्र की मिट्टी और पौधों की जांच की जाएगी ताकि खेतों में रासायनिक उर्वरक की बची हुई मात्रा का पता लगाया जा सके। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों का प्रभाव मिट्टी में करीब तीन साल तक रहता है। इस अवधि के बाद खेत की भूमि पूरी तरह जैविक श्रेणी में आ जाती है। इस योजना से न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और स्वस्थ कृषि प्रणाली को भी बढ़ावा मिलेगा।










