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Sun, Dec 7, 2025

राजस्थान के दशकों पुराने इतिहास को भारतीय रेलवे दे रहा नई पहचान, क्या है सांगानेरी प्रिंट और किस प्रतापी राजा से है इसका ताल्लुक

Written by:Atul Saxena
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जिस सांगानेरी प्रिंट के कंबल कवर एसी में सफ़र करने वाले यात्रियों को दिए वो सांगानेर क्षेत्र वर्तमान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का विधानसभा क्षेत्र है वहीं इस प्रिंट इतिहास करीब 300 साल पुराना है।
राजस्थान के दशकों पुराने इतिहास को भारतीय रेलवे दे रहा नई पहचान, क्या है सांगानेरी प्रिंट और किस प्रतापी राजा से है इसका ताल्लुक

भारत अलग अलग संस्कृति, कला, परंपरा, भाषा, खानपान और पहनावे वाला देश है और यही इसकी खूबसूरती भी है, यहाँ हर राज्य का अपना एक इतिहास है अलग संस्कृति है,  इन सबमें जब राजस्थान की बात आती है तो चटपटा स्वादिष्ट भोजन, राजस्थानी स्वागत सत्कार, लोक संगीत और यहाँ की कला मन को आकर्षित कर लेती है, अब एक ऐसी ही कला को नई पहचान देने जा रहा है भारतीय रेलवे। 

यात्रियों के लिए पिछले दिनों रेलवे मंत्रालय ने एक अच्छी खबर सुनाई थी वो ये कि अब उन्हें चुभन वाले कम्बलों से आजादी मिल जाएगी, रेलवे इसपर अब एक कवर भी देगा, रेलवे के इसके पीछे हाइजीन को एक बड़ी वजह बताया है,  केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गुरुवार को राजस्थान के खातीपुरा रेलवे स्टेशन पर सांगानेरी प्रिंट के कंबल कवर की शुरुआत जयपुर-अहमदाबाद एक्सप्रेस से की। 

राणा सांगा ने बसाया सांगानेर, यहीं से निकली ये कला 

सांगानेर प्रिंट का इतिहास दशकों पुराना है, राजस्थान की राजधानी जयपुर भारत का एक ऐसा शहर है जो प्राचीन मूल्यों, विरासत, शौर्य और संस्कृति को एक साथ समेटे हुए है, इसी जयपुर के कुछ दूरी पर ही बसा है सांगानेर, जिसे 16वीं शताब्दी में मेवाड़ के महाराजा, राजपूत राजा राणा सांगा ने बसाया था। यहाँ घर घर में हाथ से की जाने वाली ब्लाक प्रिंटिंग ही सांगानेरी प्रिंट के नाम से पहचानी जाती है।

300 साल पुराना है इतिहास  

बताते हैं सांगानेरी प्रिंट का इतिहास करीब 300 साल पुराना है और आज भी इसके कद्रदान राजस्थान से लेकर दुनियाभर में मौजूद हैं, कहा जाता है कि जयपुर में जब भी कोई विशेष अवसर होता था तो राजा की पोशाक पर सांगानेरी प्रिंट होता था, ब्रिटिश शासनकाल में भी ये बहुत लोकप्रिय था, सर जॉर्ज वाट्स ने लिखा था कि सांगानेर हैंड-ब्लॉक प्रिंट की राजधानी है।

छीपा समुदाय ने संभाल रखी है विरासत 

सांगानेरी प्रिंट का काम करने वाले लोग प्रमुख रूप से छीपा समुदाय से आते हैं, इस समुदाय ने ही सांगानेरी प्रिंटिंग कला को शुरूआती दौर से संजोकर रखा और आज भी जीवित रखे हैं, उनकी कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती रही औरअब इस विरासत को रेलवे नै पहचान दे रहा है।

सांगानेरी प्रिंट क्यों है खास 

  • सांगानेरी प्रिंट एक विशेष प्रकार का पारंपरिक प्रिंट है।
  • यह प्रक्रिया काफी कठिन है लेकिन इसकी डिजाइन काफी आकर्षक होती है।
  • सांगानेरी प्रिंट की एक खास बात और है कि यह प्रिंट कई वर्षों तक हल्का नहीं पड़ता।
  • लंबे समय तक हूबहू रहने के कारण भी यह प्रिंट लोकप्रिय है।
  • इसमें लकड़ी के ब्लॉक के जरिए कपड़ों पर बारिक प्रिंट किए जाते हैं।
  • इसमें आपको ज्यादातर फूल-पत्ती, आम, कमल, पेड़ बेल-बूटे, , मछली जैसे नेचुरल मोटिफ्स देखने को मिलते हैं।
  • इस प्रिंट में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।
  • प्रिंट के लिए प्राकृतिक चीजों जैसे नीम, हरड़, हल्दी, फूलों और पौधों का इस्तेमाल रंगों के लिए किया जाता है।
  • सांगानेरी प्रिंट को सबसे ज्यादा सफेद या हल्के रंग के कॉटन फैब्रिक पर किया जाता है।
  • सांगानेरी प्रिंट में एक ही रंग की छपाई भी होती है और कई रंगों की भी। इसे कलर ब्लॉक प्रिंटिंग कहा जाता है।
  • यह पूरी प्रक्रिया पर्यावरण-अनुकूल और प्राकृतिक है, यह भारत के अलावा यूरोप, अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, फ्रांस और कई अन्य देशों में प्रसिद्ध है।