राजस्थान में एक बार फिर छात्रसंघ और पंचायत समेत नगरीय निकाय चुनाव को लेकर सियासत तेज हो गई है। विपक्ष इन तीनों चुनावों में देरी को लेकर सरकार पर निशाना साध रहा है। उधर सत्ता पक्ष भी पलटवार में जुटा है। छात्रसंघ चुनाव की मांग को लेकर छात्र नेता सड़कों पर उतर चुके हैं। लोकतंत्र को मजबूत बनाने में इन चुनावों की अहम भूमिका है। लेकिन फिलहाल सभी की तारीखें अधर में हैं।
दरअसल राजस्थान सरकार पहले ही ऐलान कर चुकी है कि पंचायत और निकाय चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। लेकिन वार्डों के पुनर्गठन, सीमांकन और जनसंख्या के आधार पर असंतुलन जैसी वजहों से प्रक्रिया अटक गई है। कई वार्डों में तय जनसंख्या से 15 से 26 फीसदी तक अंतर मिला है। 4 जून को प्रस्तावों का प्रकाशन होना था। लेकिन जिला कलक्टरों से आए प्रस्तावों पर कई जगहों से आपत्तियां आईं। मामला अब हाईकोर्ट में है जिसने सरकार को 22 जुलाई तक अंतिम रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।
सरकार की योजना सभी निकायों में चुनाव एक साथ कराने की
इस बीच जिन 111 निकायों का कार्यकाल पूरा हो चुका है वहां प्रशासक नियुक्त कर दिए गए हैं। सरकार की योजना सभी निकायों में चुनाव एक साथ नवंबर-दिसंबर में कराने की है। लेकिन इसमें 91 निकाय बाधा बन सकते हैं। इनका कार्यकाल जनवरी-फरवरी 2026 तक है। ऐसे में इनका बोर्ड भंग किए बिना चुनाव कराने और बाद में नए बोर्ड गठन का विकल्प सरकार के सामने है। पंचायतों को लेकर भी उच्च स्तरीय समिति और मुख्यमंत्री स्तर पर लगातार बैठकें हो रही हैं।
कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव रुकवाए थे
बता दें कि इन चुनावों पर 2023 से रोक लगी हुई है। कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव रुकवाए थे और भाजपा सरकार ने भी इसे जारी रखा है। 2003 से अब तक 9 बार छात्रसंघ चुनाव पर रोक लग चुकी है। 2010 से 2018 तक चुनाव लगातार हुए लेकिन उसके बाद फिर दो साल रोक लगी। फिलहाल सरकार की तरफ से कोई स्पष्ट तारीख नहीं आई है लेकिन संकेत हैं कि जुलाई के अंत या अगस्त की शुरुआत में बड़ा ऐलान हो सकता है।





