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Sat, Dec 6, 2025

मृत व्यक्ति की ‘आत्मा’ लेने ढोल-नगाड़ों के साथ पहुंचे परिजन, पुजारी भी साथ मौजूद, एक घंटे की मनुहार, मध्य प्रदेश का मामला

Written by:Ankita Chourdia
मध्य प्रदेश के रतलाम में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां मेडिकल कॉलेज में मृत व्यक्ति की आत्मा लेने के लिए परिजन और ग्रामीण पहुंचे। उन्होंने अस्पताल के बाहर पूजा-पाठ किया और फिर आत्मा को अपने साथ गांव ले गए।
मृत व्यक्ति की ‘आत्मा’ लेने ढोल-नगाड़ों के साथ पहुंचे परिजन, पुजारी भी साथ मौजूद, एक घंटे की मनुहार, मध्य प्रदेश का मामला

रतलाम: मध्य प्रदेश के रतलाम स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज में बुधवार को एक अजीबोगरीब नजारा देखने को मिला, जब दर्जनों ग्रामीण ढोल-नगाड़ों के साथ एक मृत व्यक्ति की ‘आत्मा’ लेने पहुंच गए। इस घटना ने अस्पताल स्टाफ और वहां मौजूद लोगों को हैरान कर दिया।

मामला छावनी झोडिया गांव का है, जहां के रहने वाले शांतिलाल नामक व्यक्ति की कुछ दिन पहले कीटनाशक पीने से मौत हो गई थी। उन्हें इलाज के लिए इसी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया था। बुधवार को उनके परिजन, पुजारी और गांव के अन्य लोग आत्मा लेने के लिए अस्पताल के मुख्य द्वार पर जमा हो गए।

अस्पताल के बाहर हुई पूजा-पाठ

जब सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें अस्पताल के अंदर जाने से रोका, तो उन्होंने परिसर के बाहर ही वार्ड के सामने रिलीचुअल्स शुरू कर दिए। परिवार ने पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की और कथित तौर पर आत्मा को अपने साथ चलने के लिए मनाया। करीब एक घंटे तक चले इस घटनाक्रम के बाद वे ढोल बजाते हुए आत्मा को लेकर गांव के लिए रवाना हो गए।

‘यह हमारी परंपरा है’

मृतक के परिजन भूरालाल ने बताया कि यह उनकी सामुदायिक परंपरा का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति की मृत्यु घर से बाहर होती है, उसकी आत्मा को उसी स्थान से मान-मनुहार कर वापस लाया जाता है।

“हमारे परिवार के शांतिलाल की मृत्यु यहीं हुई थी। हमारी परंपरा है कि जहां व्यक्ति की मृत्यु होती है, वहां से उसकी आत्मा को मान-मनुहार करके ले जाया जाता है। इसके बाद गांव में उसकी ‘गादिया’ (प्रतिमा) स्थापित की जाएगी।” — भूरालाल, परिजन

इस परंपरा के तहत गांव में मृतक की प्रतिमा स्थापित की जाती है, जिसके लिए आत्मा को लाना जरूरी माना जाता है।

अंधविश्वास पर शिक्षा कितनी भारी?

हालांकि, आदिवासी समाज में काम करने वाले कई सामाजिक कार्यकर्ता और जागरूक युवा इस तरह की प्रथाओं से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि यह अंधविश्वास है, जिसे शिक्षा के जरिए खत्म किया जा सकता है।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अभय ओहरी ने इस मामले पर कहा, “आदिवासी समाज में जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर सुधर रहा है, वैसे-वैसे अंधविश्वास में कमी आ रही है। हम समाज में इस तरह की कुरीतियों को लेकर जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे हैं।”

रतलाम मेडिकल कॉलेज में करीब एक घंटे तक चले इस घटनाक्रम पर प्रबंधन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई। जानकारों का मानना है कि आदिवासी अंचलों में अशिक्षा के कारण अंधविश्वास गहराया हुआ है, जिसके चलते अक्सर तंत्र-मंत्र और बच्चों को गर्म सलाखों से दागने जैसी घटनाएं भी सामने आती रहती हैं।

देखें वीडियो, सुनिए क्या बोले परिजन