MP Breaking News

Welcome

Sun, Dec 7, 2025

आंवला नवमी 2025: 31 अक्टूबर को मनेगा पर्व, जानें सही तारीख, पूजा विधि और अक्षय पुण्य का महत्व

Written by:Banshika Sharma
इस वर्ष आंवला नवमी की तिथि को लेकर असमंजस है। पंचांग के अनुसार, उदया तिथि के कारण यह पर्व 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा से अक्षय पुण्य, सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
आंवला नवमी 2025: 31 अक्टूबर को मनेगा पर्व, जानें सही तारीख, पूजा विधि और अक्षय पुण्य का महत्व

नई दिल्ली: हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का विशेष महत्व है, जिसे आंवला नवमी या अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा और आंवले के वृक्ष के पूजन के लिए समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए पुण्य कर्मों का फल कभी समाप्त नहीं होता, इसीलिए इसे ‘अक्षय’ नवमी कहते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु स्वयं आंवले के वृक्ष में निवास करते हैं। इस दिन व्रत, पूजन और दान-पुण्य करने से व्यक्ति को आरोग्य, सौभाग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

कब है आंवला नवमी 2025? जानें सही तिथि

पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 30 अक्टूबर 2025, गुरुवार को सुबह 10:06 बजे शुरू होगी। यह तिथि अगले दिन, यानी 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को सुबह 10:03 बजे समाप्त होगी। हिंदू धर्म में सूर्योदय के समय मान्य तिथि (उदया तिथि) को ही पर्व के लिए शुभ माना जाता है। इसलिए, इस वर्ष आंवला नवमी का पर्व 31 अक्टूबर, शुक्रवार को ही मनाया जाएगा।

आंवला नवमी का महत्व और पूजन विधि

आंवला नवमी को आरोग्य नवमी, कूष्मांड नवमी और धात्री नवमी जैसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है।

पूजा के लिए सुबह स्नान के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। वृक्ष की जड़ों में जल और कच्चा दूध अर्पित करें। इसके बाद पेड़ पर रोली, चंदन, अक्षत, फूल और सिंदूर चढ़ाएं। वृक्ष के तने पर कच्चा सूत या मौली लपेटकर आठ बार परिक्रमा करें। कपूर या घी का दीपक जलाकर आरती करें और भगवान विष्णु से परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करें।

इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने की भी परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, आंवले का सेवन, स्नान और दान करना अमृत के समान फलदायी माना गया है।

इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथाएं

आंवला नवमी से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण पर थीं। उनकी इच्छा भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा करने की हुई। उन्होंने विचार किया कि तुलसी भगवान विष्णु को और बेलपत्र भगवान शिव को प्रिय है, लेकिन इन दोनों के दिव्य गुण आंवले में समाहित हैं। तब उन्होंने आंवले के वृक्ष को ही शिव-विष्णु का प्रतीक मानकर पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर दोनों देवता प्रकट हुए और माता लक्ष्मी ने वृक्ष के नीचे ही उन्हें भोजन कराया। तभी से यह परंपरा प्रचलित हुई।

एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन आदि शंकराचार्य को एक निर्धन स्त्री ने भिक्षा में एक सूखा आंवला दिया था। उसकी दरिद्रता देखकर शंकराचार्य ने ‘कनकधारा स्तोत्र’ की रचना कर मां लक्ष्मी का आह्वान किया, जिसके बाद देवी ने उस महिला के घर पर सोने के आंवलों की वर्षा कर दी थी।

यह भी माना जाता है कि सतयुग का आरंभ कार्तिक शुक्ल नवमी से ही हुआ था और इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण कंस का वध करने के लिए वृंदावन से मथुरा गए थे।