Wed, Dec 24, 2025

आषाढ़ अमावस्या पर लगाएं ये पौधे दूर होगा शनि-राहु दोष, घर में आएगी 7 पीढ़ियों की सुख-शांति

Written by:Bhawna Choubey
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आषाढ़ अमावस्या पर कुछ खास उपाय करने से सिर्फ वर्तमान नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी लाभ पाती हैं। अगर इस दिन नीम और पीपल जैसे दो पवित्र पौधे सही विधि से लगाए जाएं, तो जीवन में राहु-शनि दोष दूर होकर घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
आषाढ़ अमावस्या पर लगाएं ये पौधे दूर होगा शनि-राहु दोष, घर में आएगी 7 पीढ़ियों की सुख-शांति

हिंदू पंचांग में आषाढ़ अमावस्या का दिन बेहद शुभ माना जाता है। यह सिर्फ तर्पण और पितृ पूजन का दिन नहीं है, बल्कि कुछ खास उपायों से जीवन की कई परेशानियों से भी मुक्ति मिल सकती है। खासतौर पर अगर इस दिन नीम और पीपल के पौधे लगाए जाएं, तो उसका प्रभाव कई पीढ़ियों तक रहता है।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, आषाढ़ अमावस्या (Ashadha Amavasya 2025) पर ये पौधे लगाने से राहु-शनि जैसे ग्रहों का दुष्प्रभाव कम होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आइए जानते हैं आषाढ़ अमावस्या 2025 पर नीम और पीपल क्यों लगाने चाहिए और इसके पीछे छिपा धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्य।

आषाढ़ अमावस्या 2025: क्यों खास है नीम और पीपल का पौधा?

1. नीम: घर की बुराई और रोग हटाने वाला पौधा

नीम को आयुर्वेद और धर्म दोनों में विशेष स्थान प्राप्त है। आषाढ़ अमावस्या पर नीम का पौधा लगाने से घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। मान्यता है कि यह पौधा राहु के बुरे प्रभाव को शांत करता है और स्वास्थ्य लाभ भी देता है। नीम को सुबह स्नान कर दक्षिण-पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है।

2. पीपल: शनिदेव को प्रसन्न करने वाला ब्रह्म वृक्ष

पीपल को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास स्थल माना गया है। इसे लगाने से शनि दोष शांत होता है और व्यक्ति को मानसिक शांति, नौकरी में उन्नति और परिवार में सुख-शांति प्राप्त होती है। आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल का पौधा लगाकर उस पर जल अर्पित करना और दीप जलाना बेहद शुभ माना गया है।

3. 7 पीढ़ियों तक मिलता है पुण्य फल

धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जो व्यक्ति आषाढ़ अमावस्या पर इन पौधों को लगाता है, उसे स्वयं के साथ-साथ सात पीढ़ियों तक पुण्य लाभ मिलता है। यह पौधे सिर्फ ग्रहदोष दूर करने के लिए नहीं, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी अमूल्य हैं। बच्चों को भी इन पौधों के महत्व की जानकारी देकर इस परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है।