सनातन धर्म में माँ लक्ष्मी को धन सुख और समृद्धि की देवी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है वह कभी भी पैसों की तंगी नहीं होती है न ही दुख होता है। ख़ासतौर पर शुक्रवार का दिन माँ लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय है। इस दिन लोग भक्तिभाव से उनकी पूजा करते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
कहा जाता है कि माँ लक्ष्मी का स्वाभाव चंचल है, कि वह एक जगह नहीं टिकती है। इसलिए व्यक्ति के जीवन में कभी सुहाता है तो कभी दुख। लेकिन ज्योतिसर पुरानी मान्यताओं के अनुसार अगर शुक्रवार के दिन लक्ष्मी की पूजा के साथ अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो घर में पैसों की तंगी दूर होती है और सुख शांति बनी रहती है।

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का महत्व क्या है?
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र में माँ लक्ष्मी की आठ रूपों आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी की स्तुति की जाती है। इन आठों रूपों का स्मरण करने से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। जैसे ही आदि लक्ष्मी से आध्यात्मिक समृद्धि, धन लक्ष्मी से आर्थिक समृद्धि, और विद्या लक्ष्मी से ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में संतुलन और स्थिरता बनी रहती है।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने की विधि
- अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने के लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और साफ़ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद पूजा स्थान को साफ़ करें और वहाँ माँ लक्ष्मी की तस्वीर या फिर मूर्ति को स्थापित करें।
- अब वो माँ लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाएं और फूल, फल तथा मिठाई का भोग लगाएं।
- इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके शांत मन से स्तोत्र का पाठ करें।
- पार्थ पूरा करने के बाद माँ लक्ष्मी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के क्या क्या लाभ होते हैं?
अष्ट लक्ष्मी कहा हर शुक्रवार को पाठ करने से जीवन में धन सुख और समृद्धि आती है। आर्थिक परेशानियां भी धीरे धीरे दूर हो जाती है, व्यापर में तरक़्क़ी होती है। इसके अलावा मानसिक शांति और पारिवारिक सुख भी मिलता है। इतना ही नहीं यह स्तोत्र विद्यार्थियों के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है क्योंकि विद्या लक्ष्मी की कृपा से ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि होती है। नौकरीपेशा लोगों के लिए भी यह स्तोत्र नए नए अवसर लेकर आता है, प्रमोशन के भी योग बनते हैं।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र (Ashtalakshmi Stotra)
1. सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,
चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि,
मंजुल भाषिणी वेदनुते ।
पंकजवासिनी देव सुपूजित,
सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
आद्य लक्ष्मी परिपालय माम् ॥
2. अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी,
वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि,
मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते ।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि,
देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्॥
3. जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि,
मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद,
ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी,
साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥
4. जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि,
सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत,
परिजन मण्डित लोकनुते ।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,
ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम् ॥
5. अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि,
राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,
सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,
मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ॥
6. जय कमलासिनि सद्गति दायिनि,
ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर,
भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,
शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ॥
7. प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि,
शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण,
शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि,
कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ॥
8. धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि,
दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम,
शंख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित,
वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम् ॥
फलशृति
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी॥
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय: ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्॥