Shani Dosh Upay : शनि देव को कर्मों का देवता कहा जाता है वह जिन पर मेहरबान रहते हैं। उनका जीवन आलीशान तरीके से गुजरता है। इतना ही नहीं उन्हें जीवन में किसी भी तरह की कोई समस्या झेलनी नहीं पड़ती है। लेकिन जिन पर शनि देव की बुरी दृष्टि रहती है वह पाइ पाइ से मोहताज हो जाता है। इतना ही नहीं उसका जीवन दुखों से गिर जाता है। वह जीवन में तमाम परेशानियों से परेशान रहने लगता है।
अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए वह कई तरह के उपाय भी करता है, लेकिन कोई फायदा उन्हें देखने को नहीं मिलता। क्योंकि शनि देव की बुरी दृष्टि से मुक्ति पाना कोई आसान बात नहीं है। अगर आप भी शनि दोष, शनि की साढ़े साती या ढैया से परेशान है और इसके लिए अब तक कई उपाय कर चुके हैं लेकिन कोई फायदा नहीं मिल रहा है तो आज हम आपको शनि दोष और बाकि सभी दोषों से मुक्ति पाने के लिए एक उपाय बताने जा रहे हैं जिसे शनिश्चरी अमावस्या पर अपना कर आप सभी दुखों और दोषों से मुक्ति पा सकते हैं। चलिए जानते हैं उस उपाय के बारे में –
हम बात कर रहे हैं शनिदेव के 108 नाम और उनके मंत्र के बारे में। जी हां, शनिश्चरी अमावस्या पर शनि दोष और शनि की साढ़े साती से मुक्ति पाने के लिए अगर आप पूरे मन से शनि के 108 नामों का जाप करेंगे और शनि निवारण मंत्र का जाप करेंगे तो आपको काफी ज्यादा फायदा देखने को मिलेगा। वहीं शनिदेव भी आप दे प्रसन्न होंगे और आपको मालामाल कर देंगे।
Shani Dosh से मुक्ति दिलाएगा शनिदेव के 108 नामों का जाप
- घन
- सौम्य
- शरण्य
- सर्वाभीष्टप्रदायिन्
- सुरवन्द्य
- शनैश्चर
- सुरलोकविहारिण्
- सुखासनोपविष्ट
- सुंदर
- शांत
- घनरूप
- घनाभरणधारिण्
- घनसारविलेप
- खद्योत
- मन्द
- वरेण्य
- सर्वेश
- मन्दचेष्ट
- महनीयगुणात्मन्
- मर्त्यपावनपद
- महेश
- छायापुत्र
- शर्व
- शततूणीरधारिण्
- चरस्थिरस्वभाव
- अचञ्चल
- नीलवर्ण
- नित्य
- नीलाञ्जननिभ
- नीलाम्बरविभूशण
- निश्चल
- वेद्य
- विधिरूप
- विरोधाधारभूमी
- भेदास्पदस्वभाव
- वज्रदेह
- वैराग्यद
- वीर
- वीतरोगभय
- विपत्परम्परेश
विश्ववन्द्य - गृध्नवाह
- गूढ
- कूर्माङ्ग
- कुरूपिण्
- कुत्सित
- गुणाढ्य
- गोचर
- आयुष्यकारण
- आपदुद्धर्त्र
- विष्णुभक्त
- वशिन्
- अविद्यामूलनाश
- विद्याविद्यास्वरूपिण्
- विविधागमवेदिन्
- विधिस्तुत्य
- वन्द्य
- विरूपाक्ष
- वरिष्ठ
- गरिष्ठ
- वज्राङ्कुशधर
- वरदाभयहस्त
- वामन
- ज्येष्ठापत्नीसमेत
- श्रेष्ठ
- मितभाषिण्
- कष्टौघनाशकर्त्र
- पुष्टिद
- स्तुत्य
- स्तोत्रगम्य
- भक्तिवश्य
- अशेषजनवन्द्य
- विशेषफलदायिन्
- भानु
- भानुपुत्र
- भव्य
- पावन
- धनुर्मण्डलसंस्था
- धनदा
- धनुष्मत्
- तनुप्रकाशदेह
- तामस
- वशीकृतजनेश
- पशूनां पति
- खेचर
- घननीलाम्बर
- काठिन्यमानस
- आर्यगणस्तुत्य
- नीलच्छत्र
- नित्य
- निर्गुण
- गुणात्मन्
- निन्द्य
- वन्दनीय
- धीर
- दिव्यदेह
- दीनार्तिहरण
- क्रूर
- क्रूरचेष्ट
- दैन्यनाशकराय
- आर्यजनगण्य
- कामक्रोधकर
- कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण
- परिपोषितभक्त
- परभीतिहर
- भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद
- निरामय
- शनि
दोष निवारण मंत्र
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम। उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।
डिस्क्लेमर – इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। एमपी ब्रेकिंग इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह लें।