Chanakya Niti: मान-सम्मान पाने के लिए इन 6 चीजों का करें त्याग, समाज में बढ़ेगी आपकी इज्जत

Sanjucta Pandit
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Chanakya Niti : आचार्य चाणक्य भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण व्यक्ति माने जाते हैं। वे भारतीय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के मंत्री और रणनीतिकार थे। उनके योगदान ने मौर्य साम्राज्य को महान बनाया। उनकी ग्रंथ “अर्थशास्त्र” और “चाणक्य नीति” भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो कि समृद्धि, राजनीति और समाज के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। चाणक्य के द्वारा बताई गई रणनीति और कूटनीति उनके काल से लेकर आज तक महत्वपूर्ण हैं। चाणक्य का योगदान विभिन्न क्षेत्रों में हुआ है और उन्हें “कौटिल्य” और “विष्णुगुप्त” के नामों से भी जाना जाता है। उनके नीतिसूत्रों और विचारों का अध्ययन आज भी नैतिकता, राजनीति और व्यवसायिक मामलों में लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।

Chanakya Niti: मान-सम्मान पाने के लिए इन 6 चीजों का करें त्याग, समाज में बढ़ेगी आपकी इज्जत

चाणक्य नीति में धर्म, अर्थ और कर्तव्य के साथ-साथ जीवन की विभिन्न महत्वपूर्ण नीतियों के बारे में विस्तार से बताया गया है। जिसमें कुछ ऐसी आदतों के बारे में भी बताया गया है, जिनके कारण व्यक्ति को अपमान का सामना करना पड़ता है। ये आदतें व्यक्ति के व्यवहार और चरित्र को बिगाड़ सकती हैं। ऐसे में यदि आप भी समाज में मान-सम्मान पाना चाहते हैं तो तुरंत इन बुरी आदतों को त्याग दें, अन्यथा आप लोगों के बीच मजाक और हंसी का पात्र बन सकते हैं। आइए जानें विस्तार से…

अहंकार

चाणक्य नीति में अहंकार को इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। अहंकार एक ऐसी आदत है जो व्यक्ति के चरित्र और संवाद में दुश्मनी और अपमान का कारण बन सकती है। अहंकार का अधिक मात्रा में होना व्यक्ति के सम्बन्ध में बाधा उत्पन्न करने का कारक होता है। यह व्यक्ति को स्वार्थी और दुश्मनी भावनाओं में डूबने के प्रवृत्ति का कारण बन सकता है, जिससे उनके समाज और परिवार के सदस्यों के साथ संबंध कमजोर बनाते हैं।

निंदा

आचार्य चाणक्य के अनुसार, मनुष्य को दूसरों की निंदा करने की बुरी आदत को त्याग देनी चाहिए। दूसरों की निंदा करने से न केवल दूसरों को नुकसान पहुंचता है, बल्कि यह खुद के लिए भी हानिकारक हो सकता है। जब हम दूसरों की निंदा करते हैं, तो हम अपनी नकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा देते हैं और खुद को अधिक दुखी महसूस कराते हैं। इससे रिश्तों में भी दूरी आती है।

झूठ

झूठ बोलना या झूठ के सहारे सफलता प्राप्त करना अच्छी आदत नहीं होती। इससे व्यक्ति को अपमान का सामना करना पड़ता है। झूठ के सहारे की गई सफलता आमतौर पर अस्थायी होती है। यह व्यक्ति के आत्मविश्वास को कम कर देता है।

लोभ

चाणक्य नीति में लोभ को भी इंसान का दुश्मन माना जाता है। इससे व्यक्ति को समाज में अपमानित होना पड़ता है। यह लोभी इंसान के व्यवहार को नकारात्मक बनाता है। लोभ व्यक्ति को आनंद और संतुष्टि से दूर रख सकता है क्योंकि यह व्यक्ति को हमेशा और अधिक की तलाश में रहने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे वह कभी भी संतुष्ट नहीं हो पाते। जिसके कारण वो हंसी के पात्र भी बन जाते हैं।

क्रोध

क्रोध एक और आदत है जो अपमान का कारण हो सकती है। क्रोध व्यक्ति के अपमान का कारण बन सकता है। यह उसके व्यवहार को नकारात्मक बनाता है और दूसरों के साथ संवाद को कठिन बना देता है। क्रोध रिश्तों को बिगाड़ सकता है। यह व्यक्ति को उनके करीबी और प्रिय लोगों से दूर करता है। इससे व्यक्ति का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है क्योंकि इससे तनाव और चिंता की स्थिति उत्पन्न होती है। इस दौरान व्यक्ति गलत निर्णय ले लेता है, जिससे उन्हें बहुत नुकसान झेलना पड़ सकता है।

द्वेष

द्वेष एक ऐसी भावना है जो व्यक्ति को अपमानित करने का कारण हो सकती है, जिसे चाणक्य ने दुश्मन के रूप में दर्ज किया है। चाणक्य नीति में मित्रता को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इसलिए कभी भी व्यक्ति को मित्र या कोई भी अन्य व्यक्ति से द्वेष नहीं रखनी चाहिए। अन्यथा, आपको समाज में अपमानित होना पड़ेगा और आपका साथ भी कोई समय पर कोई नहीं देगा, जिसके कारण आपको अकेले जीवन गुजरना पड़ सकता है।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना अलग-अलग जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)


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Sanjucta Pandit

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मैं संयुक्ता पंडित वर्ष 2022 से MP Breaking में बतौर सीनियर कंटेंट राइटर काम कर रही हूँ। डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन और बीए की पढ़ाई करने के बाद से ही मुझे पत्रकार बनना था। जिसके लिए मैं लगातार मध्य प्रदेश की ऑनलाइन वेब साइट्स लाइव इंडिया, VIP News Channel, Khabar Bharat में काम किया है।पत्रकारिता लोकतंत्र का अघोषित चौथा स्तंभ माना जाता है। जिसका मुख्य काम है लोगों की बात को सरकार तक पहुंचाना। इसलिए मैं पिछले 5 सालों से इस क्षेत्र में कार्य कर रही हुं।

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