फाल्गुन अमावस्या पर पितरों का आशीर्वाद पाने का शुभ अवसर, करें यह खास उपाय

फाल्गुन अमावस्या (Falgun Amavasya) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, खासकर पितरों की शांति और कृपा प्राप्त करने के लिए. इस दिन पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

Bhawna Choubey
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हिन्दू धर्म में हर तिथि का विशेष महत्व होता है, ठीक इसी तरह फाल्गुन अमावस्या (Falgun Amavasya) तिथि का भी विशेष महत्व है, अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित होती है. इस दिन परिवार के लोगों के द्वारा पूर्वजों की पूजा की जाती है साथ ही साथ उनका तर्पण भी किया जाता है. साल भर में 12 अमावस्या तिथि पड़ती है, अमावस्या के दिन स्नान ध्यान और दान पुण्य का विशेष महत्व है.

अमावस्या का दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए विशेष दिन माना जाता है, इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने और दान पुण्य करने का विशेष महत्व बताया गया है. ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन आपके द्वारा किए गए कार्यों की वजह से अगर पूर्वजों की आत्मा को शान्ति मिलती है, उनकी आत्मा तृप्त होती है, तो घर में हमेशा सुख शांति बनी रहती है.

फाल्गुन अमावस्या, पितरों की कृपा पाने का शुभ समय

पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए आप अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करने, दान पुण्य करने के अलावा मित्र स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं, इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप किसी कारणवश पवित्र नदी में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो नहाने के पानी में कुछ बूंद गंगा जल की मिलाकर भी आप स्नान कर सकते हैं, इसके अलावा पूजा पाठ के दौरान पिता स्तोत्र का पाठ अवश्य करें. ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार वालों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं.

।।पितृ स्तोत्र का पाठ।।

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।


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Bhawna Choubey

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