भारत में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के पश्चिमी राज्यों में यह 10 दिनों तक चलता है, वहीं पूर्वी राज्यों की बात करें तो दो से तीन दिन भगवान की पूजा अर्चना की जाती है और अंत में विसर्जन के साथ विदाई दी जाती है। इस पूरे 10 दिन शहरों में भक्ति का माहौल रहता है। खासकर महाराष्ट्र और गुजरात समेत मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में गणपति बप्पा हर घर में विराजते हैं। वहीं गली-मोहल्ले में बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं और भगवान की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनका सुबह-शाम विधिपूर्वक पूजा अर्चना भी होता है।
देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां भगवान गणेश की पूजा अर्चना होती है। उनके दर पर जाने वाला कोई भी व्यक्ति कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है।
शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 27 अगस्त से प्रारंभ हुआ है, जिसका समापन अनंत चतुर्दशी के दिन यानी 6 सितंबर 2025 को होगा। सनातन धर्म में भगवान गणेश का अपना अलग ही स्थान है। भगवान गणेश विघ्नहर्ता माने जाते हैं क्योंकि वे अपने भक्तों पर आने वाले सभी संकट को हर लेते हैं। इसके अलावा, वे बुद्धि, विवेक और समृद्धि के देवता कहे जाते हैं। गणपति जी को गजानन, गणपति, विनायक, विघ्नेश्वर, वक्रतुंड, लंबोदर, एकदंत और सिद्धिदाता के नाम से जाना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। वे सफलता, समृद्धि और सिद्धि के दाता माने जाते हैं। इनकी आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां की परंपरा बहुत ही अलग और खास है।
चिंतामन गणेश मंदिर
बता दें कि यह मंदिर मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में स्थित है। यहां मौजूद चिंतामन गणेश मंदिर न सिर्फ आस्था का बड़ा केंद्र है, बल्कि अपनी अनोखी परंपराओं और प्राचीन इतिहास के कारण पूरी दुनिया में पहचान रखता है। कहते हैं कि यहां आने वाले भक्त खाली हाथ नहीं लौटते। बप्पा की कृपा से यहां आने वाले हर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। सालों भर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
प्रतिमा है स्वयंभू
आमतौर पर मंदिरों में स्थापित मूर्तियों को किसी ने विधिवत स्थापित किया होता है, लेकिन चिंतामन गणेश मंदिर की खासियत यह है कि यहां की प्रतिमा स्वयंभू है, यानी यह धरती से खुद ही प्रकट हुई है। इस मंदिर का संबंध विक्रमादित्य काल से है। उस दौर में सीहोर को सिद्धपुर कहा जाता था और यही से चिंतामन गणेश की आराधना शुरू हुई।
राजा का सपना
किंवदंती के अनुसार, करीब 2 हजार साल पहले उज्जयिनी के राजा चिंतामन गणेश के बड़े भक्त थे। एक दिन भगवान गणेश ने सपने में उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मंदिर के पश्चिम में बह रही नदी में वे कमल के रूप में प्रकट होंगे। राजा को आदेश दिया गया कि उस कमल को उठाकर, जहां चाहे स्थापित करें। राजा ने वैसा ही किया, लेकिन वापसी के दौरान एक चमत्कार हुआ। उनके रथ का पहिया कीचड़ में धंस गया और निकल नहीं सका। तभी सूर्योदय हुआ और हाथ में रखा कमल का फूल भगवान गणेश की मूर्ति में बदल गया। मूर्ति का निचला हिस्सा जमीन में धंस गया और लाख कोशिशों के बावजूद बाहर नहीं निकाला जा सका। राजा ने इसे दिव्य संकेत मानते हुए उसी स्थान पर मंदिर निर्माण का आदेश दिया।
उल्टा स्वस्तिक बनाने की परंपरा
इस मंदिर की एक परंपरा इसे और खास बनाती है। यहां भक्त दीवारों पर उल्टा स्वस्तिक बनाते हैं। आमतौर पर स्वस्तिक को शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, लेकिन चिंतामन गणेश मंदिर में इसे उल्टा बनाने का रिवाज है। मान्यता है कि जो भी भक्त यहां उल्टा स्वस्तिक बनाकर बप्पा से मनोकामना मांगता है, उसकी इच्छा अवश्य पूरी होती है। केवल इतनी ही नहीं, जैसे ही उनकी मुराद पूरी होती है, वे फिर से मंदिर लौटकर दीवार पर सीधा स्वस्तिक बनाते हैं। यह परंपरा पहली बार सुनने वालों को भले ही अजीब लगे, लेकिन यहां हर श्रद्धालु इस परंपरा को निभाता है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)





