Wed, Dec 24, 2025

आज है देवशयनी एकादशी 2025, बिना यह कथा पढ़े अधूरा है व्रत, जानिए महत्व और पूजा विधि

Written by:Bhawna Choubey
Published:
देवशयनी एकादशी 2025 में 8 जुलाई को मनाई जाएगी, इस दिन भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस खास अवसर पर व्रत रखना तभी फलदायक होता है जब इसकी पारंपरिक कथा का पाठ किया जाए, जानिए इसकी पूरी जानकारी।
आज है देवशयनी एकादशी 2025, बिना यह कथा पढ़े अधूरा है व्रत, जानिए महत्व और पूजा विधि

देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025) जिसे आषाढ़ शुक्ल एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। इस दिन से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है वह चार महीने जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, जैसे विवाह या गृह प्रवेश, नहीं किया जाता। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस व्रत का असली फल तभी मिलता है जब इसकी कथा का पाठ विधिपूर्वक किया जाए।

इस लेख में हम न सिर्फ देवशयनी एकादशी 2025 की तारीख, महत्व, और व्रत विधि के बारे में बताएंगे, बल्कि इस व्रत से जुड़ी वह कथा भी साझा करेंगे जिसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं इस शुभ दिन के बारे में पूरी जानकारी।

देवशयनी एकादशी कब है 2025 में?

2025 में देवशयनी एकादशी 6 जुलाई मंगलवार को पड़ रही है। इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में जाते हैं और प्रबोधिनी एकादशी (कार्तिक माह) तक निद्रा में रहते हैं। यही चार महीने चातुर्मास कहलाते हैं, जिनमें हर एक मास की एकादशी विशेष होती है।

देवशयनी एकादशी का महत्व

देवशयनी एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति अगले जन्म में भी पुण्यशील जीवन पाता है।

यह व्रत खासतौर पर विवाह, संतान सुख और स्वास्थ्य की कामना रखने वालों के लिए बेहद फलदायक माना गया है। देवी लक्ष्मी भी इस दिन विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं और परिवार में समृद्धि व सुख-शांति का आशीर्वाद देती हैं।

कैसे करें देवशयनी एकादशी व्रत

  • प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
  • घर या मंदिर में शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी भगवान विष्णु की प्रतिमा की स्थापना करें।
  • तुलसी दल, पीले पुष्प, चंदन, घी का दीपक, और भोग में पंचामृत का उपयोग करें।
  • पूरे दिन व्रत रखें और अगर संभव हो तो निर्जल व्रत रखें।
  • रात में विष्णु सहस्रनाम और देवशयनी एकादशी कथा का पाठ करें।
  • अगले दिन प्रातः पारण कर व्रत का समापन करें।

व्रत को पूर्ण करने वाली पौराणिक कथा

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार राजा मान्धाता के राज्य में भीषण दुर्भिक्ष पड़ा। प्रजा भूख-प्यास से मरने लगी। राजा ने ऋषि अंगिरा से मार्गदर्शन मांगा। उन्होंने राजा को आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी।

राजा ने पूरे विधि-विधान से व्रत किया, और उसके फलस्वरूप उनके राज्य में बारिश हुई, अन्न उपजा और सुख-शांति लौट आई। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि देवशयनी एकादशी का व्रत केवल आत्मकल्याण ही नहीं, बल्कि सामूहिक कल्याण का भी मार्ग है।

भगवान विष्णु की योग निद्रा का आरंभ

इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते हैं। यह शयन अवधि प्रबोधिनी एकादशी तक चलती है। इस दौरान सभी देवकार्य निषेध माने जाते हैं। भगवान की निद्रा का काल चातुर्मास कहलाता है और इसे आत्म-संयम, भक्ति, और सेवा भाव से बिताने की परंपरा है।

तुलसी विवाह और चातुर्मास का संबंध

देवशयनी एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी) तक चलने वाले इस काल के अंत में तुलसी विवाह होता है। मान्यता है कि जब विष्णु भगवान योगनिद्रा से जागते हैं, तब तुलसी जी से उनका विवाह होता है, जो विवाह संस्कारों के लिए शुभ समय की पुनः शुरुआत को दर्शाता है।