हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, लेकिन देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025) का स्थान सबसे ऊंचा माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के योगनिद्रा में चले जाते हैं और धरती पर धार्मिक कार्यों की शुरुआत होती है। यही समय होता है जब भक्त अपने कष्टों से मुक्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विशेष पूजा-पाठ करते हैं।
संतान की प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपतियों के लिए देवशयनी एकादशी बेहद खास होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करने से संतान सुख मिलता है। यह स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और वर्षों से संतान प्राप्ति की भावना रखने वाले भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है।
देवशयनी एकादशी पर संतान गोपाल स्तोत्र का महत्व
क्यों खास है देवशयनी एकादशी?
देवशयनी एकादशी को ‘हरिशयनी एकादशी’ भी कहा जाता है। यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन किए गए व्रत और पाठ का फल कई गुना अधिक मिलता है। खासतौर से संतान की कामना रखने वाले इस दिन संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
संतान गोपाल स्तोत्र क्या है?
संतान गोपाल स्तोत्र एक प्राचीन वैदिक स्तुति है, जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इसमें उनके बाल स्वरूप की स्तुति की जाती है। यह स्तोत्र न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि शास्त्रों के अनुसार निसंतान दंपतियों के लिए चमत्कारी माना गया है। इसे ब्रह्ममुहूर्त या एकादशी के दिन पूजा के समय पढ़ना अत्यंत शुभ होता है।
कैसे करें पाठ और पूजा?
देवशयनी एकादशी के दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उन्हें दूध, माखन और मिश्री अर्पित करें। इसके बाद शांत मन से संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करें। पाठ करते समय भगवान से संतान सुख की प्रार्थना करें और अंत में आरती करके प्रसाद ग्रहण करें।





