धनतेरस का त्योहार न केवल धन और समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि यह स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक उपचार का भी दिन माना जाता है। हर साल इस दिन लोग भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा करते हैं, जो स्वास्थ्य और धन के देवता माने जाते हैं। इस दिन अगर आप उनकी पूजा में धन्वंतरि आरती का पाठ नहीं करते हैं, तो माना जाता है कि पूजा अधूरी रह जाती है।
2025 का धनतेरस (Dhanteras 2025) एक बार फिर हमें यह अवसर देता है कि हम आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्राप्त करें। इस वर्ष, आरती के महत्व, सही विधि और मंत्र के सही उच्चारण को जानना बेहद जरूरी है, ताकि घर में सुख-शांति और धन की वर्षा हो।
भगवान धन्वंतरि को क्यों माना जाता है स्वास्थ्य और धन के देवता?
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के जनक और स्वास्थ्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनका रूप कलश और अमृत के साथ दर्शाया जाता है, जो आयु और रोग-निवारण का प्रतीक है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस के दिन उनकी पूजा करने से घर में धन की वृद्धि, रोग निवारण और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन धन्वंतरि आरती का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
धन्वंतरि आरती का महत्व और लाभ
धन्वंतरि आरती न केवल धन और समृद्धि लाती है, बल्कि यह मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का भी स्रोत है। इसका नियमित पाठ करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है। वास्तविक धन और संपत्ति की प्राप्ति होती है। घर में सकारात्मक वातावरण बनता है। बीमारियों और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा मिलती है। इस आरती का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे धनतेरस के शुभ मुहूर्त में पढ़ना बेहद फलदायी माना गया है।
Dhanteras 2025 पर धन्वंतरि आरती पाठ विधि
- एक दीप
- कपूर और धूप
- फल, फूल और नैवेद्य
- आरती का पाठ:
- दीप जलाएं और भगवान धन्वंतरि के सामने रखें।
- कपूर और धूप से पूजा स्थल सुगंधित करें।
मंत्र उच्चारण करें
“ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः श्री धन्वंतरये त्वं नमः” आरती के साथ भजन और शांति मंत्र भी गाएं। पूजा के बाद प्रसाद वितरण करें और घर के प्रत्येक सदस्य को इसका आशीर्वाद दें। ध्यान रखें कि भक्ति भाव और शुद्ध मन के साथ पाठ करना सबसे महत्वपूर्ण है।
धन्वंतरि जी की आरती
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।
जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।





