Bhagavad Gita : भगवद गीता हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक है। भगवद गीता के सन्देश मानवता के लिए अत्यंत मूल्यवान हैं। महाभारत युद्ध के समय में अर्जुन को धर्म और कर्म के संदेश को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया था। इस ग्रंथ में दिए गए तत्त्वों और मार्गदर्शन से व्यक्ति अपने जीवन में सही नैतिकता, धार्मिकता और उच्चतम मानवीय मूल्यों की ओर अग्रसर हो सकता है। गीता में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग जैसे विभिन्न योगों का वर्णन है, जो मानव जीवन को एक उच्च स्तर पर लेकर जाने का मार्ग दिखाते हैं। इसमें व्यक्ति के विकास के लिए मार्गदर्शन है, जिससे वह अपनी अंतरात्मा को समझ सकता है और सही निर्णय ले सकता है।
गीता का सन्देश समय के साथ भी अपनी महत्ता बनाए रखता है और लोगों को जीवन में मार्गदर्शन प्रदान करता है। वहीं, आज के समय में जीवन कई तरह के छलावों और प्रतिस्पर्धात्मकता के दबाव में है। मानव समाज में कई परिस्थितियां ऐसी हैं, जो उन्हें पाप का भागीदार बनाती है। जिससे बचाव के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उपाए बताए हैं। आइए जानें विस्तार से…
भगवान ने समझाया पाप करने का कारण
दरअसल, भगवद गीता में एक प्रमुख श्लोक है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि मनुष्य किस प्रकार पाप करता है, भले ही वह इच्छा न करते हुए भी।
“केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥”
इस श्लोक में भगवान कह रहे हैं कि मनुष्य किसी अनजाने शक्ति या बल के अनुसार पाप करता है, जैसे कोई बल के नियंत्रण में बिना चाहे भी कुछ कर रहा हो। यह श्लोक मनुष्य के कार्यों की आवश्यकता को बताता है। साथ ही यह भी संकेत करता है कि मानव अक्सर अपनी इच्छाओं के बल पर नहीं बल्कि उसे प्रेरित करने वाली शक्ति के अनुसार कार्य करता है।
बता दें कि भावनाएं और मनोवृत्तियां एक-दूसरे के साथ जुड़ी होती हैं जो कि मानव जीवन को किसी दिशा में ले जाती हैं। काम वासना से क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से भ्रम पैदा होता है। वहीं, किसी भी अन्याय, पाप या विनाश से बचने के लिए अपने मन को नियंत्रित करना होता है। अपनी भावनाओं को समझना और संतुलित बुद्धि से काम करना बेहद महत्त्वपूर्ण है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना अलग-अलग जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)