भारत विविधताओं का देश है। यहां धार्मिक स्थलों की कोई कमी नहीं है, जिनमें से एक उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भी है। यहां हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें विश्व भर के भक्त श्रद्धा भाव के साथ शामिल होते हैं। इस पावन अवसर पर भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, जो कि उनकी मौसी का घर माना जाता है।
मान्यता है कि भगवान के रथों को खींचने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है। इस साल 27 जून 2025 को रथ यात्रा निकाली जाएगी। इसके लिए तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है।
56 भोग का महाप्रसाद
इस मंदिर में एक रसोई है, जिसमें रोज़ 56 भोग का महाप्रसाद बनाया जाता है, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है। यहां आने वाले भक्त बिना प्रसाद ग्रहण किए वापस नहीं जाते। इस मंदिर को लेकर कई सारे रहस्य जुड़े हुए हैं, जिनमें से एक यह भी है कि जैसे ही आप मंदिर के भीतर प्रवेश करेंगे, आपको समुद्र की लहरों की आवाज़ सुनाई देना बंद हो जाएगी। लेकिन जैसे ही आप मंदिर से बाहर कदम रखेंगे, आपको समुद्र की लहरें वापस साफ़ तौर पर सुनाई देंगी।
रोज बदलना पड़ता है ध्वज
इस मंदिर के शिखर पर एक पताका (ध्वज) लगी हुई है, जो हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराती है। इस झंडे को हर रोज़ बदला जाता है। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि यदि शिखर का ध्वज एक दिन भी नहीं फहराया गया, तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा। इस मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी लगा हुआ है, जिसे आप जिस दिशा से देखेंगे, वह उसी दिशा में मुड़ा हुआ नजर आएगा।
पौराणिक कथा
इन सभी रहस्यों का संबंध हनुमान जी से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु समुद्र की आवाज़ के कारण सो नहीं पा रहे थे। जैसे ही इस बात का अनुमान हनुमान जी को हुआ, उन्होंने समुद्र देव से विनती की कि वह अपनी आवाज़ को रोक दें। तब समुद्र देव ने हनुमान जी से सहमति जताते हुए कहा कि यह मेरे बस में नहीं है। जहां तक हवा जाएगी, वहां तक मेरी लहरों की आवाज़ भी पहुंचेगी।
पवन देव ने बताया ये उपाय
तब हनुमान जी ने समुद्र देव से उपाय पूछा, जिस पर उन्होंने बताया कि आप अपने पिता पवन देव से विनती करें और उनसे कहें कि वह मंदिर की दिशा में न बहें। इसके बाद हनुमान जी अपने पिता पवन देव के पास पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। इस पर पवन देव ने कहा कि यह मेरे लिए संभव नहीं है, लेकिन मैं तुम्हें एक उपाय बता सकता हूं। तुम मंदिर के चारों ओर इतनी तेजी से चक्कर लगाओ कि वायु का ऐसा चक्र बन जाए जो सामान्य पवन को मंदिर के अंदर प्रवेश न करने दे। पवनपुत्र हनुमान ने फिर ऐसा ही किया, जिससे समुद्र की लहरों की आवाज़ मंदिर के अंदर जाना बंद हो गई। तब जाकर भगवान श्री जगन्नाथ आराम से सोने लगे।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)





