गणेश जी की आरती (Lord Ganesh Aarti) हर पूजा का सबसे अहम हिस्सा मानी जाती है। ‘जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा’ की गूंज जब मंदिर या घर में गूंजती है, तो माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो जाता है। यह सिर्फ एक भजन नहीं बल्कि भगवान गणपति के प्रति श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। कहते हैं कि जिस पूजा में गणेश जी की आरती नहीं होती, वो अधूरी मानी जाती है।
गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता यानी बाधाएं दूर करने वाला देवता कहा जाता है। उनकी आरती करने से मन शांत होता है और जीवन की परेशानियां दूर होने लगती हैं। ऐसा माना जाता है कि जहां नियमित रूप से गणेश जी की आरती होती है, वहां नकारात्मक ऊर्जा टिक नहीं पाती और घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।

गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त,चार भुजाधारी।
माथे पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी॥
पान चढ़े फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे,सन्त करें सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
अँधे को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥
‘सूर’ श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो,जग बलिहारी॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
गणेश जी की आरती करने के लाभ
- गणेश जी की आरती करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
- गणेश जी को बुद्धिदाता कहा जाता है, उनकी आरती करने से मानसिक स्पष्टता और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
- आरती करने से मन को शांति मिलती है और तनाव कम होता है।
- आरती के दौरान उच्चारण किए गए मंत्र सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।
- गणेश जी की आरती करने से घर में धन-धान्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
- नियमित आरती करने से भक्ति और ध्यान का स्तर बढ़ता है।
- किसी भी नए कार्य की शुरुआत में गणेश जी की आरती करने से कार्य सफल होता है।
गणेश जी की आरती करने की विधि और सही समय
शुद्ध रूई से बनी घी की बत्ती का उपयोग करें। कपूर से भी आरती की जा सकती है। आरती करते समय दीपक को भगवान के चरणों में 4 बार, नाभि पर 2 बार, चेहरे पर 1 बार और पूरी मूर्ति पर 7 बार घुमाएं। गणेश जी की आरती ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) या सूर्योदय के समय करना शुभ माना जाता है। शाम के समय भी आरती की जा सकती है। आरती के बाद ‘वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।’ मंत्र का उच्चारण करें।
Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।