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Thu, Dec 18, 2025

Gita Updesh: गीता उपदेश के अनुसार इन 2 चीजों से बढ़कर नहीं होता कोई दान, मिलता है पुण्य

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
गीता उपदेश के अनुसार, अन्न और जल से बढ़कर कोई दान नहीं होता, माता-पिता से बढ़कर कोई देवता नहीं होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में अन्न और जल का विशेष महत्व बताया गया है।
Gita Updesh: गीता उपदेश के अनुसार इन 2 चीजों से बढ़कर नहीं होता कोई दान, मिलता है पुण्य

Gita Updesh : श्रीमद्भगवद्गीता सनातन धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का विस्तृत वर्णन है जोकि संस्कृत भाषा में लिखा गया था। हालांकि, अब इसे अन्य कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। इसे कुल 18 अध्याय और 700 श्लोकों में विभाजित किया गया है। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक, बल्कि दार्शनिक, नैतिक और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर आधारित है। दरअसल, युद्ध आरंभ होने से पहले अर्जुन अपने सगे-संबंधियों को शस्त्र के साथ तैयार देखकर दुखी हो गए थे, इसलिए उन्होंने इस लडाई को ना लड़ने की इच्छा जताई थी। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने महज 45 मिनट के भीतर गीता का ज्ञान देते हुए बताया कि हर व्यक्ति का एक धर्म होता है जिसे निभाना आवश्यक है। साथ ही उन्होंने अर्जुन को उनका क्षत्रिय धर्म याद दिलाते हुए कहा कि यह उनका परम कर्तव्य है कि वह युद्ध करे और अपनी प्रजा को धर्मवीर राजा प्रदान करे। आगे वह कहते हैं कि आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है। आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, बल्कि केवल शरीर बदलती है जैसे हम पुराने वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र धारण करते हैं। जिसके बाद उन्होंने अपना विश्व रुप प्रकट कर उनकी सारी दुविधाएं खत्म कर दी। फिर यह महायुद्ध शुरू हुआ, जिसमें कई बड़े-बड़े योद्धा वीर गति को प्राप्त हुए और अंत में पांड़वों को कौरवों पर जीत हासिल हुई। वहीं, गीता उपदेश में बताई गई बातों को अपनाने वाला हर एक व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको उन दो बड़े दानों के बारे में बताएंगे, जिससे बड़ा कोई दान नहीं होता है।

गीता उपदेश के अनुसार, अन्न और जल से बढ़कर कोई दान नहीं होता, माता-पिता से बढ़कर कोई देवता नहीं होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में अन्न और जल का विशेष महत्व बताया गया है।

अन्न का महत्व

अन्नदान को हिन्दू धर्म में सर्वोत्तम दानों में से एक माना जाता है। अन्न जीवन का आधार है और इसका दान किसी की भूख को मिटाता है। गीता में अन्न को परमात्मा का स्वरूप माना जाता है, क्योंकि यह जीवन प्रदान करता है और शरीर को ऊर्जा देता है। इससे भूख मिटाई जाती है, जोकि सबसे बड़ी सेवा मानी जाती है। इसका दान सबसे पुण्यकारी और महत्वपूर्ण माना गया है।

जल का महत्व

जैसा कि हम सभी जानते हैं जल ही जीवन का आधार है। वहीं, हिंदू धर्म में इसका दान अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। जलदान से किसी की प्यास बुझाई जाती है, जोकि जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। जल जीवन की नींव है। यह शरीर के सभी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक है और किसी भी जीव के जीवित रहने के लिए आवश्यक है। हिन्दू धर्म में जलदान को महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि यह सीधे तौर पर जीवन को सहारा देता है। किसी भी प्यासे व्यक्ति या जीव को जल देने से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता।

गीता के उपदेशों के अनुसार, अन्न और जल का दान न केवल सहायता है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति का भी साधन है। अन्न और जल का दान करने से व्यक्ति को मानसिक तौर पर शांति मिलती है।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)