सावन का महीना लगभग खत्म ही होने वाला है। आखिरी दिनों में भगवान शिव के भक्तों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। कावड़ यात्रा को देखते हुए जगह-जगह ट्रैफिक डाइवर्जंस बनाए गए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई समस्या ना हो। बता दें कि सावन के महीने का हर एक दिन श्रद्धालुओं के लिए बहुत ही ज्यादा खास होता है। वे तमाम कोशिश करते हैं जिससे बाबा भोलेनाथ प्रसन्न हो जाएं। इसके लिए भगवा वस्त्र धारण करके, खुद के दिमाग को शांत रखते हैं और भगवान की भक्ति में लीन हो जाते हैं। इस पूरे महीने व्यक्ति सुबह उठकर हर रोज ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने पर उस व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की खचाखच भीड़ उमड़ रही है। इन दिनों भीड़ में इजाफा देखने को मिला है, इसलिए जगह-जगह पुलिस बल भी तैनात कर दिए गए हैं। बाबा भोलेनाथ के प्रसिद्ध मंदिरों में श्रद्धालु और भी अधिक मात्रा में पहुंच रहे हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
आज हम आपको घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में बताएंगे, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है। इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, जो कि नाग आदिवासियों का स्थान रहा है। यह भगवान शिव का अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जिसकी व्याख्या शिव पुराण में भी वर्णित है। सावन और शिवरात्रि के मौके पर यहां भक्तों की बहुत ही ज्यादा भीड़ उमड़ती है। मंदिर परिसर की देखभाल स्थानीय पुजारी करते हैं, जो सुबह और शाम आरती भी करते हैं। हर सोमवार को यहां लोग जल चढ़ाने के लिए आते हैं। सावन के महीने में लगभग रोज श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा की बात करें तो, दक्षिण भारत में देवगिरी पर्वत के पास सुधर्मा नामक एक ब्राह्मण रहा करते थे। उन्हें अपनी पत्नी सुदेहा से बहुत ज्यादा प्रेम था। दोनों एक साथ बहुत ही सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे थे, लेकिन दोनों को संतान नहीं हो रही थी, जिसकी कमी उन्हें धीरे-धीरे खलने लगी। तब वे एक ज्योतिष से मिले, जिन्होंने उन्हें बताया कि सुदेहा कभी भी मां नहीं बन सकती। इसलिए सुदेहा ने यह इच्छा जताई कि सुधर्मा ब्राह्मण उनकी छोटी बहन से विवाह करें। सुधर्मा को यह विचार पसंद नहीं आया, परंतु पत्नी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा और उन्होंने घुश्मा से विवाह किया, जो भगवान शिव की भक्त थीं।
दूसरी पत्नी से हुआ पुत्र
इतिहास में इस बात का वर्णन है कि वह हर रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर, उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना किया करती थीं। ऐसे में भगवान शिव की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, जिसे सुदेहा और घुश्मा दोनों ही प्यार करती थीं। समय के साथ सुदेहा के मन में ईर्ष्या की भावना जन्म लेने लगी। वह सोचने लगी कि सुधर्मा और उस बच्चे पर केवल उसी का अधिकार है। यह भावना धीरे-धीरे उसके मन में बढ़ती चली गई और उसका द्वेष भी बढ़ता गया।
सुदेहा ने की बेटे की हत्या
समय बीतता गया और जब घुश्मा का पुत्र बड़ा हो गया तो उसका विवाह किया गया। तभी एक रात सुदेहा ने घुश्मा के बेटे की हत्या कर दी और उसके शव को उस तालाब में फेंक दिया, जहां घुश्मा पार्थिव शिवलिंग विसर्जित किया करती थीं। जैसे ही इस बात का पता चला सुधर्मा और उनकी बहू शोक में डूब गए। हालांकि, घुश्मा भगवान शिव की पूजा में लीन रहीं। पूजा समाप्त करने के बाद, जब वह पार्थिव शिवलिंग विसर्जित करके वापस लौट रही थीं, तो उन्होंने अपने बेटे को जीवित अवस्था में तालाब के बाहर पाया।
घुश्मा ने की प्रार्थना
तभी भगवान शिव वहां प्रकट हुए और घुश्मा को वरदान मांगने के लिए कहा। केवल इतना ही नहीं, वे सुदेहा से काफी ज्यादा क्रोधित थे और उसे दंड भी देना चाहते थे। तभी घुश्मा ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि उनकी बहन को क्षमा करें और उन्हें दंड न दें। घुश्मा की भक्ति से वे इतने ज्यादा प्रसन्न हुए कि उन्होंने सुदेहा को क्षमा कर दिया। तब से ही वहां भगवान शिव की पूजा की जाने लगी और भगवान शिव ‘घृष्णेश्वर महादेव’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।
आप भी जाएं
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में जो कोई भी संतान की मुराद लेकर जाता है, उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। वह कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता। इसलिए कहा जाता है कि यदि किसी को संतान नहीं हो रही हो, तो बस इस मंदिर में अवश्य जाए।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)





