देवों के देव महादेव के भक्ति उनकी श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं। सनातन धर्म में भगवान शिव का बहुत अधिक महत्व है। उन्हें त्रिलोचन के नाम से भी जाना जाता है, जो शक्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं। महाशिवरात्रि, सोमवारी, सावन, प्रदोष व्रत, आदि सारे त्योहार बाबा भोलेनाथ को समर्पित है। आज हम आपको शंकर जी के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथाएं बताएंगे, जिनका वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है।
महादेव त्रिनेत्र, महेश, भोलेनाथ, नीलकंठ और गंगाधर आदि के नाम से जाने जाने वाले भगवान शिव के हर नाम के पीछे कोई-ना-कोई रहस्य और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है।

प्रचलित कथा
प्रचलित कथाओं की मानें तो भगवान शिव जब माता सती के वियोग में तपस्या कर रहे थे। तब देवताओं को तारका सरनेम का रक्षा बहुत परेशान कर रहा था। तब सभी ब्रह्मा जी के पास बचाव के लिए पहुंचे, जहां उन्होंने बताया कि तारकासुर का वध शिव जी के पुत्र द्वारा ही संभव है। तब देवताओं ने शिव और माता पार्वती के विवाह के लिए कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। इस दौरान कामदेवता ने अपने पुष्प वाहनों से भगवान शिव के ज्ञान को भंग करने का प्रयास किया, जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपनी आंखें खोली तब उनके ललाट से प्रचंड अगली ज्वाला निकली, जिसने कामदेव को भस्म कर दिया। यही अग्नि ज्वाला भगवान शिव का तीसरा नेत्र बनी।
अन्य कथा
महादेव की तीसरी आंख को लेकर एक कथा यह भी प्रचलित है कि यह भूतकाल, वर्तमान और भविष्य को दर्शाता है। साथ ही यह स्वर्ग लोक, मृत्यु लोक और पाताल लोक को एक साथ जोड़ता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान के तीसरे नेत्र बंद होते ही चारों तरफ विनाश की स्थिति बन जाती है। एक अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव का तीसरा नेत्र ऊर्जा का प्रतीक है।
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