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Sun, Dec 21, 2025

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में हर साल निभाई जाती हैं ये 7 पवित्र परंपराएं, जानिए इनके पीछे की आस्था

Written by:Ronak Namdev
Published:
जगन्नाथ रथ यात्रा के 7 महत्वपूर्ण रीति-रिवाज, स्नान यात्रा से लेकर चेरा पहारा तक। जानें इनके धार्मिक महत्व, प्रक्रिया और परंपराओं के बारे में विस्तार से।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में हर साल निभाई जाती हैं ये 7 पवित्र परंपराएं, जानिए इनके पीछे की आस्था

जगन्नाथ रथ यात्रा, ओडिशा के पुरी में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार, अपनी भव्यता और धार्मिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को उनके मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाने का उत्सव है। इस यात्रा से पहले और बाद में कई रीति-रिवाज किए जाते हैं, जो इसकी पवित्रता और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं।

इनमें से सात प्रमुख रीति-रिवाज स्नान यात्रा, अणावासर, नेत्रोत्सव, रथ निर्माण, रथ यात्रा, बहुड़ा यात्रा और चेरा पहारा इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा हैं। इन परंपराओं के पीछे गहरी आध्यात्मिक और ऐतिहासिक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। ये रीति-रिवाज न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करते हैं, बल्कि भक्तों को एकता और समर्पण का संदेश भी देते हैं। हर चरण को ध्यान से और परंपरागत तरीके से पूरा किया जाता है, जो इसे विश्व प्रसिद्ध बनाता है। आइए, इन सात रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1. स्नान यात्रा (Snana Yatra)

स्नान यात्रा रथ यात्रा से पहले ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को मंदिर के स्नान मंडप में लाया जाता है और 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है। यह उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद मूर्तियों को अणावासर कक्ष में ले जाया जाता है।

2. अणावासर (Anavasara)

स्नान के बाद मूर्तियों को 15 दिनों के लिए अणावासर कक्ष में रखा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि स्नान से वे बीमार पड़ जाते हैं। इस दौरान राज वैद्य (शाही डॉक्टर) उनकी देखभाल करते हैं, और भक्तों को उनकी पूजा की अनुमति नहीं होती। यह समय मूर्तियों की मरम्मत और पेंटिंग के लिए भी उपयोग किया जाता है।

3. नेत्रोत्सव (Netrotsava)

अणावासर के बाद नेत्रोत्सव मनाया जाता है, जिसमें मूर्तियों की आंखें चित्रित की जाती हैं। यह रीति-रिवाज मूर्तियों को जीवन प्रदान करने का प्रतीक है। भक्त इस दौरान पहली बार मूर्तियों के दर्शन करते हैं, जो एक भावनात्मक क्षण होता है।

4. रथ निर्माण (Chariot Construction)

रथ यात्रा के लिए हर साल नए रथ बनाए जाते हैं। ये रथ लकड़ी से तैयार किए जाते हैं और उनके पहिए, रंग और सजावट की खास डिजाइन होती है। यह प्रक्रिया महीनों पहले शुरू हो जाती है, और इसे पुरी के कारीगरों द्वारा परंपरागत तरीके से पूरा किया जाता है।

5. रथ यात्रा (Rath Yatra)

रथ यात्रा का मुख्य दिन होता है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को सजाए गए रथों पर रखकर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। लाखों भक्त इस जुलूस में हिस्सा लेते हैं और रथ को खींचते हैं, जो भक्ति का प्रतीक है।

6. बहुड़ा यात्रा (Bahuda Yatra)

8वें दिन बहुड़ा यात्रा होती है, जिसमें मूर्तियों को वापस जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है। यह वापसी का उत्सव होता है, जिसमें फिर से भव्य जुलूस निकाला जाता है। रास्ते में भक्त प्रसाद वितरण और मंदिर की सजावट में हिस्सा लेते हैं।

7. चेरा पहारा (Chera Pahara)

रथ यात्रा के अंतिम दिन चेरा पहारा रीति-रिवाज किया जाता है। पुरी के गजपति राजा सोने की झाड़ू से रथ के सामने सफाई करते हैं, जो उनकी विनम्रता और भगवान के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह रीति-रिवाज रथ यात्रा को औपचारिक रूप से समाप्त करता है।