हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, और सालभर में 24 एकादशियां आती हैं। इनमें से इंदिरा एकादशी खास मानी जाती है क्योंकि यह पितृपक्ष में आती है। 2025 में लोग असमंजस में हैं कि इंदिरा एकादशी 16 सितंबर को है या 17 सितंबर को। पंचांग और ज्योतिषीय गणना के अनुसार सही तिथि और मुहूर्त जानना बेहद जरूरी है।
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत के साथ-साथ पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। आइए विस्तार से जानते हैं इंदिरा एकादशी 2025 की तिथि, मुहूर्त और धार्मिक महत्व।
इंदिरा एकादशी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
1. इंदिरा एकादशी 2025 की तारीख
पंचांग के अनुसार इंदिरा एकादशी 2025 की शुरुआत 16 सितंबर की रात से होगी और इसका समापन 17 सितंबर को होगा। इसलिए व्रत और पूजा 17 सितंबर, बुधवार को ही करना शुभ माना गया है। इस दिन व्रत करने से पितृ तृप्त होते हैं और भक्तों पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
2. पूजा का शुभ मुहूर्त
व्रत का पारण (समापन) अगले दिन सूर्योदय के बाद उचित समय पर करना चाहिए। 17 सितंबर को प्रातःकाल में स्नान करके व्रत और पूजा का संकल्प लेना, तुलसी और भगवान विष्णु को भोग अर्पित करना और पितरों के लिए जल अर्पण करना सबसे शुभ माना जाता है।
3. पितृपक्ष में महत्व
चूंकि इंदिरा एकादशी पितृपक्ष में आती है, इसलिए यह खास मायने रखती है। इस दिन व्रत रखने और श्राद्ध करने से न सिर्फ पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है, बल्कि परिवार में चल रही बाधाएं और समस्याएं भी दूर होती हैं। इसे पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का उत्तम अवसर माना जाता है।
इंदिरा एकादशी का धार्मिक महत्व
पितरों की आत्मा की शांति
मान्यता है कि इंदिरा एकादशी का व्रत करने से पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अगर किसी कारणवश पूर्वजों का श्राद्ध न हो पाया हो, तो इस दिन व्रत और तर्पण करने से वह अधूरा कर्म पूर्ण हो जाता है।
भगवान विष्णु की कृपा
इंदिरा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन विष्णुजी की विशेष पूजा करने से जीवन की कठिनाइयां दूर होती हैं और व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। घर-परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
व्रत विधि और नियम
इस दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें। घर में गंगाजल का छिड़काव करके वातावरण को शुद्ध करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर तुलसी, पीले पुष्प और फल अर्पित करें। दिनभर फलाहार करें और रात को भगवान का भजन-कीर्तन करें। अगले दिन व्रत का पारण करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।





