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Thu, Dec 18, 2025

जगन्नाथ रथ यात्रा 2025, सोने की झाड़ू से रास्ते की सफाई करने को शुभता का प्रतीक

Written by:Sanjucta Pandit
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ज्योति शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा की पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसके लिए सभी बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस साल 27 जून 2025 को रथ यात्रा निकाली जाएगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025, सोने की झाड़ू से रास्ते की सफाई करने को शुभता का प्रतीक

ओडिशा के पूरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक महत्वपूर्ण और भव्य धार्मिक आयोजन है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। इस पावन अवसर पर भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र तीन अलग-अलग विशाल रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं जोकि जो उनकी मौसी का घर माना जाता है। इस दौरान लाखों भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। यह यात्रा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है।

ज्योति शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा की पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसके लिए सभी बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस साल 27 जून 2025 को रथ यात्रा निकाली जाएगी। इस बार कुछ चीजें ऐसी होंगी, जिनके बारे में सुनकर आप हैरान रह जाएंगे।

खास परंपरा

यात्रा से पहले सोने की झाड़ू से रास्ते की सफाई की जाती है, जिससे पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है। यह जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के प्रति आभार जताने का प्रतीक होता है। यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। मान्यताओं के अनुसार कोई भी व्यक्ति इस झाड़ू से सफाई नहीं कर सकता बल्कि केवल राजाओं के वंशज ही इस कार्य में भाग ले सकते हैं। यात्रा से पहले के रास्ते को पूरी तरह से स्वच्छ और शुद्ध कर दिया जाता है।

वैदिक मंत्रों का जाप

बता दें कि सोने की झाड़ू से सफाई किए जाने के बाद वैदिक मंत्रों का जाप किया जाता है, जिसके बाद रथ यात्रा शुरू होती है। चूंकि सोना एक पवित्र धातु होता है, इसलिए उसका उपयोग भगवान और देवी-देवताओं की पूजा में किया जाता है। इस यात्रा को देखने के लिए केवल भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों की संख्या में लोग पुरी पहुंचते हैं।

लकड़ी का होता है इस्तेमाल

भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम ‘नंदीघोष’ है और इसमें 16 पहिए होते हैं। बलभद्र के रथ का नाम ‘तालध्वज’ है और इसमें 14 पहिए होते हैं, जबकि सुभद्रा के रथ का नाम ‘दर्पदलन’ है और इसमें 12 पहिए होते हैं। रथों की सजावट देखने लायक होती है। जिसे अक्षय तृतीया से बनाना शुरू कर दिया जाता है। जिसका निर्माण नीम के पेड़ की लकड़ी से होती है। वहीं, इस यात्रा के बाद रथों की लकड़ी का उपयोग भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद बनाने के लिए किया जाता है, जिससे रथों का पवित्र उपयोग होता है। तीनों रथों के पहियों को भक्तों में बेचा जाता है, जो इन्हें अपने घरों में शुभ और पवित्र मानते हैं।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)