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Wed, Dec 17, 2025

Kanwar Yatra: 22 जुलाई से कांवड़ यात्रा की होगी शुरुआत, जानें इससे जुड़े कुछ जरूरी नियम

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सावन माह भगवान शिव की आराधना का विशेष समय होता है और कांवड़ यात्रा इसी माह के दौरान शुरू होती है। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको कांवड़ यात्रा से जुड़े कुछ जरूरी नियम बताएंगे।
Kanwar Yatra: 22 जुलाई से कांवड़ यात्रा की होगी शुरुआत, जानें इससे जुड़े कुछ जरूरी नियम

Kanwar Yatra 2024 : कावड़ यात्रा भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा है। इस यात्रा में भक्त अपने कंधों पर कांवड़ लेकर पवित्र गंगाजल लाते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा सावन के महीने में होती है, जो भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। कांवड़ियों के लिए यह यात्रा बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि यह पूरी यात्रा पैदल ही की जाती है। हर साल लाखों भक्त हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री और अन्य पवित्र स्थानों से गंगाजल लाकर अपने क्षेत्र के शिवालयों में जलाभिषेक करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सावन माह भगवान शिव की आराधना का विशेष समय होता है और कांवड़ यात्रा इसी माह के दौरान शुरू होती है। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको कांवड़ यात्रा से जुड़े कुछ जरूरी नियम बताएंगे। आइए जानते हैं विस्तार से…

Kanwar Yatra

तिथि

पंचांग के अनुसार, साल 2024 में सावन माह की शुरुआत 22 जुलाई, सोमवार से हो रही है। इसी दिन से कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत होगी। वहीं, कांवड़ यात्रा का समापन 02 अगस्त 2024 को सावन शिवरात्रि के दिन होगा।

जानें नियम

  • कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
  • नशे, मांस-मदिरा या तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए।
  • यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। अगर कांवड़ को जमीन पर रखा जाता है, तो यात्रा अधूरी मानी जाती है।
  • कांवड़ यात्रा न केवल शारीरिक यात्रा है, बल्कि यह भक्तों के धैर्य और समर्पण का भी प्रतीक है।
  • कांवड़ यात्रा पूरी तरह पैदल की जाती है। इसमें वाहन का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • कांवड़ को स्पर्श करने से पहले स्नान करना आवश्यक होता है।
  • यात्रा के दौरान कांवड़ियों को विशेष ध्यान रखना होता है कि उनका शरीर किसी भी तरह से चमड़े को स्पर्श न करे।
  • यात्रा के दौरान शिव जी के नाम का उच्चारण करते रहें।

पौराणिक कथा

सावन माह की शुरुआत होते ही भक्तगण अपने-अपने स्थानों से उत्तराखंड के हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री और अन्य पवित्र स्थानों से गंगा नदी का पवित्र जल लाने के लिए निकल पड़ते हैं। इस दौरान भक्त गंगा तट से कलश में गंगाजल भरते हैं और उसे अपनी कांवड़ में बांधकर अपने कंधों पर लटका लेते हैं। इसके बाद वे अपने क्षेत्र के शिवालय में पहुंचकर इस गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार, सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया और इस प्रकार इस परंपरा की नींव रखी। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह सामूहिक धार्मिक आयोजन भी है, जिसमें लाखों भक्त एक साथ यात्रा करते हैं।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)