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Sun, Dec 21, 2025

कावड़ यात्रा: 11 जुलाई से भोले के दरबार में लगेगा भगतों का सैलाब! जानें कांवड़िए क्यों पहनते हैं भगवा कपड़े?

Written by:Sanjucta Pandit
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सावन महीने में मंदिरों को बेहद सुंदर तरीके से सजाया जाता है। भव्य सजावट, लाइटिंग, फूलों की माला से पूरा परिसर भक्तिमय हो जाता है। यह एक ऐसा समय होता है, जब शिव भक्तों की भक्ति और आस्था अपने चरम पर होती है।
कावड़ यात्रा: 11 जुलाई से भोले के दरबार में लगेगा भगतों का सैलाब! जानें कांवड़िए क्यों पहनते हैं भगवा कपड़े?

हिंदू धर्म में कावड़ यात्रा का काफी अधिक महत्व है। 11 जुलाई से सावन का महीना शुरू होने वाला है, ऐसे में शिव भक्त हरिद्वार, गोमुख, देवघर आदि से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा करते हुए शिव मंदिर जाएंगे, यहां पर जल अर्पित करेंगे और अपनी मनोकामनाएं मांगेंगे। इस पूरे महीने शिवालयों में भक्तों की खचाखच भीड़ देखने को मिलेगी। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में भगवान विष्णु के चार सागर में विश्राम करने के दौरान बाबा भोलेनाथ ही अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। इस यात्रा की शुरुआत सावन महीने के पहले दिन होती है और आखिरी सावन तक चलती है।

कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है जोकि हरिद्वार, गौमुख, गढ़मुक्तेश्वर, प्रयागराज, वाराणसी और देवघर जैसी जगहों पर गंगा जल लेकर भगवान की पूजा करने पहुंचते हैं। इस दौरान मंदिरों को बेहद सुंदर तरीके से सजाया जाता है।

क्यों पहनते हैं भगवा

इस साल 11 जुलाई से कावड़ यात्रा की शुरुआत हो रही है। ऐसे में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त तरह-तरह के उपाय अपनाते हैं। इस मौके पर ज्यादातर कमरिया भगवा वस्त्र पहने हुए नजर आते हैं। इन्हें देखकर मन में तरह-तरह के सवाल भी उठते होंगे। यदि नहीं, तो आज हम आपको इस रंग का धार्मिक और आध्यात्मिक कारण बताएंगे। ऐसे में यदि आप भी पहली बार यात्रा करने वाले हैं, तो आपके लिए भी यह जानना जरूरी हो जाएगा।

जानें कारण

  • दरअसल, भगवा रंग सेवा, त्याग, तपस्या, संकल्प, श्रद्धा, साधना और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। सनातन धर्म में साधु-संत इस रंग के ही वस्त्र पहने हुए आपको नजर आते होंगे। इस रंग को धारण करने वाला व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से काफी दूर जा चुका होता है। यह ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाने का प्रतीक है। इसलिए कावड़ लेकर जा रहे भक्त भगवा रंग के कपड़ों में नजर आते हैं।
  • कावड़ यात्रा में नदी से पवित्र जल भरकर शिवालय में जलाभिषेक किया जाता है। लेकिन इस यात्रा का उद्देश्य मात्र केवल यही नहीं है, बल्कि यह पवित्रता और शुद्धता का भी प्रतीक माना जाता है। इसलिए यात्रा के दौरान किसी भी तरह का नशा, जैसे तंबाकू, गुटखा, सिगरेट आदि का सेवन नहीं किया जाता है। इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना बेहद आवश्यक होता है। तामसिक भोजन से भी दूर रहने की सलाह दी जाती है। इसमें भी भगवा रंग अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दरअसल, यह रंग यात्रा के दौरान आपके आत्मबल को बढ़ाने में मददगार होता है। इसी वजह से कावड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु भगवा रंग के कपड़े पहनते हैं।
  • इस रंग के कपड़े पहनकर कावड़ यात्रा के दौरान शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं। इस पूरे यात्रा के दौरान वह कड़ी तपस्या कर रहे होते हैं। वैसे तो कावड़ यात्रा समूह में निकलती है क्योंकि बिना अनुशासन, सेवा भाव और समर्पण के यह मुश्किल हो जाता है। ऐसे में भगवा रंग एकजुटता का भी प्रतीक है।

क्यों लगाते हैं जयकारे

इसके अलावा, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए ‘बोल बम बम भोले’ के जयकारे लगाते हैं, जिससे वातावरण शिवमय हो जाता है। इससे भक्तों में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है। बता दें कि ‘बोल बम बम भोले’ के उच्चारण से भक्तों को किसी भी तरह का कष्ट नहीं होता और उनकी यात्रा मंगलमय होती है। यह उनके सफर का हत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इस मंत्र के माध्यम से भक्त अपने भीतर की नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं, जिससे उनकी यात्रा सफल हो जाती है।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)