कार्तिक पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की कृपा से भरें अपने भंडार, जानिए वह खास उपाय

Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी की पूजा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष विधि से पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और धन की बाढ़ आ सकती है।

Bhawna Choubey
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Kartik Purnima 2024: कार्तिक पूर्णिमा का दिन सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा का दिन माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन विशेष मुहूर्त में पूजा से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है और जीवन के सभी दुख संकट दूर होते हैं।

खासतौर पर लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से इस दिन विशेष रूप से फल मिलता है, जिससे घर में धन की वृद्धि होती है और आर्थिक तंगी भी दूर हो जाती है। यह दिन समृद्धि और सुख शांति प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है, चलिए जानते हैं की लक्ष्मी चालीसा का पाठ किस प्रकार करें।

कार्तिक पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को सुबह 6:19 मिनट से प्रारंभ होगी और 16 नवंबर को रात्रि 2:58 तक समाप्त होगी। इस विशेष तिथि पर कार्तिक पूर्णिमा का पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है जिससे जीवन में समृद्धि और सुख शांति का वास होता है। इस दिन विशेष रूप से व्रत, पूजन और दान की परंपरा निभाई जाती है जो व्यक्ति के जीवन को मंगलमय बनाती है।

लक्ष्मी चालीसा

॥ सोरठा॥

यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।

सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥

॥ दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥


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Bhawna Choubey

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