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Sat, Dec 20, 2025

भगवान शिव को बेहद प्रिय है सावन का महीना, जानें कैसे हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
इस महीने में कावड़ यात्रा पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। यह भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
भगवान शिव को बेहद प्रिय है सावन का महीना, जानें कैसे हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत

सावन का महीना कल यानी 11 जुलाई से शुरू हो जाएगा। इस दौरान कावड़ यात्रा का भी काफी अधिक महत्व है, जो कि सनातन धर्म में एक प्राचीन हिंदू तीर्थ यात्रा है, जिसमें शिव के भक्त नदी का जल भरकर शिवालयों में अर्पित करते हैं। इस दौरान वह भोलेनाथ के जयकारे लगाते हैं। एक महीने चलने वाला यह महीना कई वजह से खास होता है। इस महीने में हरे रंग का बहुत अधिक महत्व है। सुहागिन महिलाएं हाथ में हरी चूड़ियां पहनती हैं। इसके अलावा, मेहंदी लगाना और हरे रंग का वस्त्र धारण करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

भगवान शिव को समर्पित यह महीना अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है। इस महीने में पढ़ने वाले सोमवार को वैवाहिक और कुंवारी लड़कियां दोनों ही व्रत रखती हैं, जिससे उनके पति की लंबी उम्र हो और कुंवारी लड़कियों को भगवान भोलेनाथ जैसा वर मिले।

कावड़ यात्रा

आज के आर्टिकल में हम आपको यह बताएंगे कि आखिर कावड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई, आखिर पहली बार इसे कब और कौन लेकर गया था। इस महीने में लाखों भक्त केसरिया वस्त्र पहनकर कावड़ उठाते हैं और शिव की भक्ति में लीन होकर निकल पड़ते हैं। यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है, जिसे आज भी नियमों के साथ पालन किया जाता है। इस महीने में कावड़ यात्रा पौराणिक कथाओं, और आध्यात्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। यह भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक माना जाता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं की मानें तो कावड़ यात्रा की उत्पत्ति समुद्र मंथन से मानी जाती है। जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया था, उस दौरान जो विष निकला था, उसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। जिसके बाद वह नीलकंठ कहलाए थे। इस तप और त्याग को शांत करने के लिए देवताओं और ऋषियों ने गंगाजल अर्पित किया, जिससे विष की तीव्रता जल्दी ठंडी हो सके। यही परंपरा आज कावड़ यात्रा के रूप में प्रसिद्ध है।

अन्य कथा

कुछ अन्य कथाओं की मानें तो पहले यह यात्रा गांव और कस्बों’ के भक्तों द्वारा की जाती थी, जो 20वीं शताब्दी में पूरी तरह से बदल गई और लगभग लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस यात्रा को करने लगे। लोग कई बार 100 से 200 किलोमीटर तक पैदल चलते हैं और कावड़ यात्रा को संपन्न करते हैं।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)