Thu, Dec 25, 2025

जगन्नाथ पुरी: दुनिया की सबसे बड़ी रसोई, जहां रोज बनता है 56 भोग, बाहर आते ही फैल जाती है सुगंध!

Written by:Sanjucta Pandit
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इस पावन अवसर पर भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र तीन अलग-अलग विशाल रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं जोकि उनकी मौसी का घर माना जाता है।
जगन्नाथ पुरी: दुनिया की सबसे बड़ी रसोई, जहां रोज बनता है 56 भोग, बाहर आते ही फैल जाती है सुगंध!

ओडिशा के पूरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक महत्वपूर्ण और भव्य धार्मिक आयोजन है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। इस पावन अवसर पर भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र तीन अलग-अलग विशाल रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं जोकि उनकी मौसी का घर माना जाता है। इस दौरान लाखों भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। यह यात्रा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है।

ज्योति शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा की पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसके लिए सभी बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस साल 27 जून 2025 को रथ यात्रा निकाली जाएगी।

बनाए जाते हैं 3 तरह के प्रसाद

इस मंदिर को लेकर कई सारे रहस्य जुड़े हुए हैं जिन्हें सुनकर आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन यह बिल्कुल सच है। दुनिया की सबसे बड़ी इस मंदिर की रसोई में रोज़ाना 56 भोग का महाप्रसाद बनाया जाता है। यहां तीन तरह से प्रसाद बनाए जाते हैं। जिसमें पहला संकुदी महाप्रसाद है, जिसे मंदिर में ही ग्रहण करना होता है। इसे भक्त घर नहीं ले जा सकते। इसमें चावल, दाल, सब्ज़ी, दलिया आदि जैसे भोग आते हैं।

दूसरे प्रकार का महाप्रसाद ‘सुखिला’ कहलाता है, जिसमें सूखी मिठाइयाँ शामिल होती हैं। इसे भक्त अपने घर ले जा सकते हैं।

इसके अलावा, तीसरी प्रसाद को मरणासन्न व्यक्तियों के लिए बनाया जाता है, जिसे ‘निर्मला प्रसाद’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सूखा चावल होता है। यह मंदिर के पास स्थित बैकुंठ में खास तौर पर उन व्यक्तियों के लिए बनाया जाता है जो मृत्यु शैया पर पड़े होते हैं। मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से व्यक्ति के पापों का नाश हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महाप्रसाद

मंदिर में कार्य करने वाले लोग सहित स्थानीय निवासी का यह कहना है कि इस प्रसाद को जब बनाया जाता है, तो उसमें से कोई सुगंध नहीं आती। बनकर तैयार हो जाने के बाद इसे माता विमला देवी के मंदिर में ले जाया जाता है। फिर इस प्रसाद का भोग मुख्य मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को लगाया जाता है। इसके बाद जैसे ही इस प्रसाद को मंदिर से बाहर लाया जाता है, तो इससे सुगंध आने लगती है। इसी वजह से यह महाप्रसाद कहलाता है। भक्तों को यह प्रसाद मंदिर में स्थित आनंद बाज़ार में मिलता है।

अन्य रहस्य

वहीं, इस मंदिर के भीतर जाते ही आपको समुद्र की लहरें सुनाई देनी बंद हो जाती हैं, लेकिन जैसे ही आप मंदिर से बाहर कदम रखेंगे, आपको समुद्र की लहरें वापस साफ सुनाई देंगी। दुनिया की सबसे बड़ी इस रसोई में हजारों लोगों के लिए रोज खाना बनता है। ऐसा एक भी दिन नहीं जाता जब कोई भक्त बिना प्रसाद के यहां से चला जाए। इस मंदिर की एक और खास बात है कि इसकी कभी परछाई नहीं बनती।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)