महाअष्टमी पर पढ़ें देवी से जुड़ी 10 कहानियां जो बहुत कम लोग जानते हैं, नवरात्रि पर जानिए ये कम प्रचलित लेकिन महत्वपूर्ण कथाएं

नवरात्रि हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो नौ रातों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है। इन नौ दिनों में देवी के अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है, जो जीवन में शक्ति, साहस, करुणा और ज्ञान का प्रतीक हैं। प्रत्येक रूप का विशेष महत्व है और वह हमें अलग-अलग शिक्षा प्रदान करता है। देवी के इन अलग अलग रूपों से जुड़ी कई कथाएं भी हैं, जो हमें जीवन में साहस और सकारात्मकता की ओर प्रेरित करती हैं।

Goddess Durga stories

Goddess Durga stories : आज नवरात्रि का आठवां दिन है और भक्त पूरी श्रद्धा से अष्टमी मना रहे हैं। अष्टमी, जिसे महाष्टमी भी कहा जाता है यह दिन विशेष रूप से महागौरी की पूजा के लिए समर्पित है जो देवी दुर्गा का आठवां स्वरूप है। महागौरी शांति, सौंदर्य और करुणा का प्रतीक हैं। इस दिन की पूजा से व्यक्ति को शुद्धि, शांत और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। महाष्टमी के दिन महागौरी की पूजा होती है। उनका वर्ण श्वेत होता है, जो शुद्धता और शांति का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि उनकी उपासना करने से सभी पाप और दुख समाप्त हो जाते हैं, और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

नवरात्रि के दौरान हम देवी से जुड़ी अनेक कहानियां पढ़ते-सुनते हैं। सदियों से देवी की शक्ति, साहस और पराक्रम से जुड़ी अनेक धार्मिक कथाएं प्रचलित रही हैं और नवरात्रि पर उनका महत्व और बढ़ जाता है। ये कथाएं हमें जीवन में कठिनाइयों को पार करने और सकारात्मक रहने के लिए प्रेरित करती हैं। हर दिन देवी के एक स्वरूप को समर्पित होता है और हर रूप से जुड़ी धार्मिक कथाएं हैं।

देवी से जुड़ी कम प्रचलित कथाएं 

आज अष्टमी पर भक्त महागौरी की अर्चना कर रहे हैं। कुछ स्थानों पर, महाष्टमी के दिन देवी काली की पूजा का भी प्रचलन है। खासकर बंगाल और पूर्वी भारत में। देवी काली शक्ति और साहस का प्रतीक मानी जाती हैं। इस दिन विशेष रूप से काली की भव्य पूजा की जाती है, जिसमें उनकी शक्ति और अद्भुत योग्यता का गुणगान किया जाता है। नवरात्रि पर हम देवी के नौ रूपों की आराधना करते हैं। माता का हर रूप किसी न किसी भाव को समर्पित है और हमें जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण सीख देता है। ऐसी अनेक कथाएं भी हैं जो हम सबने सुनी है जहां देवी अच्छाई की रक्षा के लिए राक्षसों और बुरी शक्तियों का विनाश कर रही हैं। ये सारी कथाएं हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की सीख देती हैं। आज हम आपके लिए देवी से जुड़ी कुछ ऐसी कहानियां लेकर आए हैं, जो कम प्रचलित हैं लेकिन पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

1. देवी दुर्गा और काशी की रक्षा

एक कम प्रचलित किंवदंती में कहा गया है कि देवी दुर्गा ने एक बार काशी की रक्षा की थी। जब एक राक्षस ने काशी पर आक्रमण किया तो वहां के निवासियों ने देवी दुर्गा से सहायता की याचना की। दुर्गा ने उनकी सहायता की और अपने त्रिशूल से उस राक्षस को मार गिराया। इस घटना के बाद, देवी को काशी की संरक्षिका के रूप में पूजा जाने लगा।

2. बृहस्पतिसावित्री और दुर्गा का आह्वान

इस कम प्रसिद्ध कहानी में बृहस्पति की पत्नी सावित्री पर संकट आया जब एक दानव ने उनके परिवार पर आक्रमण कर दिया। सावित्री ने देवी दुर्गा का आह्वान किया, जिन्होंने उस दानव का अंत करके परिवार की रक्षा की। इस घटना से सावित्री का देवी दुर्गा के प्रति अगाध श्रद्धा बढ़ी और उन्होंने दुर्गा की भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया।

3. देवी दुर्गा और महिषासुर के पुत्र

यह कहानी महिषासुर वध के बाद की है। ऐसा कहा जाता है कि महिषासुर का एक पुत्र था, जिसने अपनी मां से देवी दुर्गा से बदला लेने का संकल्प लिया। जब वह बड़ा हुआ तो उसने देवी दुर्गा को चुनौती दी। लेकिन दुर्गा मां ने उसे यह समझाया कि हिंसा का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए। इस कहानी में दुर्गा का शांतिपूर्ण पक्ष दर्शाया गया है जो शांति और सौहार्द्र की शिक्षा देती हैं।

4. आद्या शक्ति का प्राकट्य

आद्या शक्ति के रूप में देवी दुर्गा का प्राकट्य एक अनोखी घटना है जो कम चर्चित है। आद्या शक्ति को मूल शक्ति या विश्व की प्रथम ऊर्जा कहा जाता है। यह कहानी ‘मार्कण्डेय पुराण’ में उल्लेखित है, जिसमें कहा गया है कि देवी आद्या शक्ति ही सृष्टि की रचना, पालन और संहार करती हैं। वे सभी देवताओं की शक्ति का मूल स्रोत हैं और उनकी कृपा से ही ब्रह्मांड का संचालन होता है।

5. देवी दुर्गा और शुंभनिशुंभ के सहायक रक्तबीज

रक्तबीज की कहानी में विस्तार से बताया गया है कि रक्तबीज, एक राक्षस था जिसके रक्त की हर बूंद से नया राक्षस उत्पन्न हो जाता था। यह कहानी कम प्रचलित है कि देवी दुर्गा ने इस चुनौती का सामना कैसे किया। रक्तबीज को परास्त करने के लिए, देवी दुर्गा ने काली का आह्वान किया, जिन्होंने रक्तबीज के रक्त की प्रत्येक बूंद को अपने मुंह में पकड़ लिया, जिससे कोई नया राक्षस उत्पन्न नहीं हो सका। यह घटना दुर्गा के ‘महाकाली’ स्वरूप को उजागर करती है।

6. देवी काली का दक्षिणा काली रूप

दक्षिणा काली देवी काली का एक शांत रूप है, जो दक्षिण दिशा की ओर देखती हैं। एक कम चर्चित कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने देवी काली की भक्ति करने के लिए एक यज्ञ किया। यज्ञ के दौरान, शिव ने काली के इस शांत रूप का दर्शन किया जिसे दक्षिणा काली कहा जाता है। यह रूप काली के विनाशकारी स्वरूप के विपरीत है और शांति, सुरक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक है। दक्षिणा काली की पूजा मुख्य रूप से बंगाल में की जाती है लेकिन यह कहानी आम लोगों में ज्यादा प्रचलित नहीं है।

7. कहानी दुर्गा केशाकम्भरीरूप की

शाकम्भरी देवी दुर्गा का एक रूप हैं, जिन्हें “सब्जियों की देवी” के रूप में जाना जाता है। यह कहानी तब की है जब पृथ्वी पर एक लंबे समय तक अकाल पड़ा था। लोग भोजन और पानी के बिना संघर्ष कर रहे थे। तब दुर्गा ने शाकम्भरी रूप में अवतार लिया और सब्जियों, फलों और जल के माध्यम से लोगों का जीवन बचाया। यह स्वरूप बताता है कि दुर्गा सिर्फ युद्ध और शक्ति की देवी ही नहीं, बल्कि जीवनदायिनी भी हैं। यह कहानी प्राचीन ग्रंथों में मिलती है, लेकिन इसे आमतौर पर ज्यादा चर्चा में नहीं लाया जाता।

8. देवी काली और भगवान राम

कम प्रसिद्ध किंवदंती है कि भगवान राम ने देवी काली की पूजा की थी जब वे रावण का वध करने जा रहे थे। राम ने काली की कृपा प्राप्त करने के लिए एक विशेष यज्ञ किया था, जिसे “कुलदेवी पूजा” कहा जाता है। इस पूजा के बाद, काली ने राम को आशीर्वाद दिया कि वे रावण पर विजय प्राप्त करेंगे। यह कहानी रामायण के अन्य संस्करणों में प्रकट होती है, लेकिन यह मुख्य कथा का हिस्सा नहीं है, इसलिए यह कम ज्ञात है।

9. देवी दुर्गा और जगन्नाथ पूजा

ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक कहानी है कि यहां देवी दुर्गा को भी पूजा जाता है। यह कम ज्ञात कथा बताती है कि एक बार जब देवताओं ने भगवान जगन्नाथ से उनकी सहायता मांगी, तो भगवान ने उन्हें देवी दुर्गा का आह्वान करने को कहा। देवी ने उनके आह्वान पर प्रकट होकर देवताओं की रक्षा की। इस घटना के बाद से, जगन्नाथ मंदिर में दुर्गा पूजा का भी महत्व बढ़ गया। इस मंदिर की पूजा प्रक्रिया में दुर्गा का यह स्वरूप विशेष स्थान रखता है, लेकिन यह कहानी कम लोगों को पता है।

10. देवी काली का रक्तपी देवी रूप

एक कम प्रसिद्ध कथा है। किंवदंती के अनुसार, देवी काली का एक रूप “रक्तपी” है, जो एक असुर रक्तबीज के वध के दौरान प्रकट हुआ था। जब देवी दुर्गा ने रक्तबीज का सामना किया, तो उसकी रक्त की हर बूंद से नया राक्षस उत्पन्न हो जाता था। तब दुर्गा ने काली का आह्वान किया, जिन्होंने रक्त को पीने के लिए अपने विशाल मुंह का उपयोग किया, ताकि और राक्षस उत्पन्न न हों। यह काली का अति उग्र और भयानक रूप था, जिसे रक्तपी देवी कहा गया। यह कहानी काली की शक्ति और उनके भयानक स्वरूप की एक झलक देती है।

(डिस्क्लेमर : ये लेख और कथाएं विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों के आधार पर है। हम इसे लेकर किसी तरह का दावा नहीं करते हैं।)

 


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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